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Sunday, May 9, 2010

माँ




कमर झुक गई



माँ बूढ़ी हो गई



प्यार वैसा ही है



याद है



कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबककर



माँ ने पोंछे आँसू



खुरदरी हथेलियों से



कहानी सुनाते-सुनाते



चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर



सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताज़ा मक्*खन



रात में सुनाई



सोने के लिए लोरियाँ



इस उम्र में भी



थकी नहीं



माँ तो माँ है।

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