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Tuesday, June 1, 2010

 जगत का सब ऐश्वर्य भोगने को मिल जाय परन्तु अपने आत्मा-परमात्मा का ज्ञान नहीं मिला तो अंत में इस जीवात्मा का सर्वस्व छिन जाता है। जिनके पास आत्मज्ञान नहीं है और दूसरा भले सब कुछ हो परन्तु वह सब नश्वर है । उसका शरीर भी नश्वर है ।वशिष्ठजी कहते हैः



किसी को स्वर्ग का ऐश्वर्य मिले और आत्मज्ञान न मिले तो वह आदमी अभागा है । बाहर का ऐश्वर्य मिले चाहे न मिले, अपितु ऐसी कोई कठिनाई हो कि चंडाल के घर की भिक्षा ठीकरे में खाकर जीना पड़े फिर भी जहाँ आत्मज्ञान मिलता हो उसी देश में रहना चाहिए, उसी वातावरण में अपने चित्त को परमात्मा में लगाना चाहिए । आत्मज्ञान में तत्पर मनुष्य ही अपने आपका मित्र है । जो अपना उद्धार


जो अपना उद्धार करने के रास्ते नहीं चलता वह मनुष्य शरीर में दो पैर वाला पशु माना गया है।"तुलसीदास जी ने तो यहाँ तक कहा हैःजिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना।श्रवण रंध्र अहि भवन समाना

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