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Tuesday, July 13, 2010

अरे नादान मन ! संसार सागर में डूबना अब शोभा नहीं देता। अब परम प्रेम के सागर में डूब जा जिससे और कहीं डूबना न पड़े। तू अमृत में ऐसी डुबकी लगा कि अमृतमय हो जा। यहाँ डूबने में ही सच्चा तैरना है। यहाँ विसर्जित होने में ही सच्चा सर्जन है। इस मृत्यु में ही सच्चा जीवन है।

1 comment:

Anamikaghatak said...

doobne ichchha jagrit kar diyaa aapne..........