http://i93.photobucket.com/albums/l80/bigrollerdave/flash/sign.swf" quality="high" wmode="transparent"

Thursday, January 27, 2011

फकीर

फकीर का मतलब भिखारी नहीं । फकीर का मतलब लाचार नहीं । फकीर वह है जो भगवान  की छाती पर खेलने का सामर्थ्य रखता हो ईश्वर की छाती पर लात मारने की शक्ति जिसमें है वह फकीर । भृगु ने भगवान की छाती पर लात मार दी और भगवान पैरचंपी कर रहे हैं । भृगु फकीर थे । भिखमंगो को थोड़े ही फकीर कहते हैं ? तृष्णावान् को थोड़े ही फकीर कहते हैं ?


भृगु को भगवान के प्रति द्वेष न था । उनकी समता निहारने के लिए लगा दी लात । भगवान विष्णु ने क्या किया ? कोप किया ? नहीं । भृगु के पैर पकड़कर चंपी की कि हे मु्नि ! तुम्हें चोट तो नहीं लगी ?


फकीर ऐसे होते हैं । उनके संग में आकर भी लोग रोते हैं : ‘कंकड़ दो… पत्थर दो… मेरा क्या होगा … ? बच्चो का क्या होगा ? कुटुम्ब का क्या होगा?


सब ठीक हो जायेगा । पहले तुम अपनी महिमा में आ जाओ । अपने आपमें आ जाओ ।


न्यायाधीश कोर्ट में झाडू लगाने थोड़े ही जाता है ? वादी प्रतिवादी को, असील वकील को बुलाने थोड़ी ही जाता है ? वह तो कोर्ट में आकर विराजमान होता है अपनी कुर्सी पर । बाकी के सब काम अपने आप होने लगते हैं । न्यायाधीश अपनी कुर्सी छोड़कर पानी भरने लग जाए, झाडू लगाने लग जाए,वादी प्रतिवादी को पुकारने लग जाए तो वह क्या न्याय करेगा ?



तुम न्यायाधीशों के भी न्यायाधीश हो । अपनी कुर्सी पर बैठ जाओ । अपनी आत्मचेतना में जग जाओ ।


छोटी बड़ी पूजाएँ बहुत की । अब आत्मपूजा में आ जाओ ।

No comments: