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Friday, October 30, 2009

KARTIK SNAN

In the holy month of Kartik, which is very dear to Shri Hari, one who bathes early in the morning (before sunrise) attains the religious merit (punya) of bathing in all places of pilgrimage [Padma Purana, Brahma Khanda].Pujya Bapuji has advised that in case, one is unable to do this for the entire Kartik month, he should try to ensure that he bathes before sunrise in the last 3 days of the month (Trayodashi, Chaturdashi & Purnima). This also affords the same religious merits as bathing before sunrise during the entire Kartik month.The last three days of the Kartik month this year are from Saturday, 31st Oct'09 - Monday, 2nd Nov'09. All sadhaks are advised to take benefit of these three days (by bathing prior to sunrise).

Wednesday, October 28, 2009

सूर्य नारायण भगवान्

मनोबल संयम बढ़ाने के लिए सूर्य नारायण को अर्घ्य दे.......
सुख चाहनेवाला सुख के लिए सूर्य नारायम को अर्घ्य दे ............
धन चाहनेवाला धन की इच्छा से सूर्य नारायण को अर्घ्य दे .....
...विद्यार्थी विद्या पाने के लिए सूर्य नारायण को जल(अर्घ्य) दे...........
सुहागन अपने सुहाग की रक्षा के लिए सूर्य नारायण को अर्घ्य दे............
कुटुम्बी अपने बाल-गोपाला के लिए सूर्य भगवान को अर्घ्य दे..

देव-जगी एकादशी २९/१०/०९


देव-जगी एकादशी के दिन , संध्या के समय कपूर आरती करने से आजीवन अकाल-मृत्यु से रक्षा होती है; एक्सीडेंट, आदि उत्पातों से रक्षा होती है



प्रबोधिनी एकादशी

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’

ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।

हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।

इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।

इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।

‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।

जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

भीषम पंचक व्रत



श्री आशाराम बापू

S..... Salutations! O my Master……………………
H..... Holy is your company, sweeter than nectar.
R..... Reveals truth, breaks off all shackle,
I..... It happens unknowingly, is it not a miracle।

A..... All troubles and miseries, You keep at arm’s length,
S..... Supreme is Your grace, gives us unparallel strength.
A..... Amazing is Your voice, charming is Your compassion,
R..... Rishi Prasad is Your Prasad, in form of publication.
A..... And blessed are we, to behold You in human form,
M..... Majestic is Your appearance, turns night into morn.
B..... Bless us O Bapu, with thoughts of Your holy feet,
A..... And bestow equanimity, in victory and in defeat.
P..... Present are You always, before and after,
U..... Unceasingly we sing, Salutations ! O my Master

Tuesday, October 27, 2009

अनित्य शरीर

शरीर अनित्य है , वैभव नश्वर है , मुर्त्यु सदा नजदीक आ रही है ! अन्तः लाला ललिया देविया धर्म और पुण्य का संग्रह कराने में लग जावो आत्मा गियान बढाते जावो ...........पूज्य गुरुदेव

संत

संत तो मौजी होते हैं जो अहंकार लेकर किसी संत के पास जाता है, वह खाली हाथ लौटता है और जो विनम्र होकर शरणागति के भाव से उनके सम्मुख जाता है, वह सब कुछ पा लेता है विनम्र और श्रद्धायुक्त लोगों पर संत की करुणा कुछ देने को जल्दी उमड़ पड़ती है

Sunday, October 25, 2009

जीवन जीने के कला

तुम जियो तो एसा जियो की जेसे देखो उसमे बस , अपना आत्मा ब्रह्म दिखे ! एसा खावो की जो खावो वह प्रशाद हो जाए ! जीवन बड़ा कीमती है ! वैमनस्य और विग्रह से अपनी शक्तियों को कम क्यो करना ? व्यर्थ की चर्चा और व्यर्थ का वाणी विलास करने से अपने को बचोवो ! सत्य परमात्मा में मन को लगावो ! इसी जीवन में धन्यता का अनुभव करो ! ........पूज्य संत श्री आशाराम बापू .

Saturday, October 24, 2009

जप दियान तिथिया

इन तिथियों पर जप/ध्यान करने का वैसा ही हजारों गुना फल होता है जैसा की सूर्य/चन्द्र ग्रहण में जप/ध्यान करने से होता है:
१. सोमवती अमावस्या - (26th Jan'09, 22 Jun'09, 16th Nov'09)२. रविवार को सप्तमी हो जाए. (28th June'09, 25th Oct'09, )३. मंगलवार की चतुर्थी हो जाए.(28th Apr'09, 8th Sept'09, 22 Sept'09)४. बुधवार की अष्टमी हो जाए. (4th Mar'09, 15th Jul'09 ,29th Jul'09, 25th Nov'09, 9th Dec'09)
इन तिथियों पर जप/ध्यान का फल ग्रहण के समय किये ही जप/ध्यान के सामान होता है. इसलिए हमें इन तिथियों पर जादा जप करना चाहिए, जिस से हमें थोडे में ही जादा लाभ मिले

ब्रमवेता महापुरुष

बारह कोष चलकर जाने से भी यदि सत्पुरुष के दर्शन मिलते है तो में पेदल चलाकर जाने के लिए तेयार हु कयोकी इसे ब्रह्म्वेता महापुरुष के दर्शन से कैसा अध्यात्मिक लाभ मिलता है वह में अच्छी तरह जनता हु ...........स्वामी विवेकानंद .

Monday, October 19, 2009

नूतन वर्ष संदेश पूज्य गुरुदेव के वचन

हरि ॐ...

1. वेद व्यास जी ने युधिष्ठिर जी से कहा - नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है, उस का पूरा वर्ष हर्ष में जाता है, और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में व्यतीत होता है;

दीवाली की रात वर्ष की आखरी रात है, दूसरा दिन वर्ष का प्रारंभ है; जैसे सुबह प्रारंभिक प्रसन्नता तो दिन भर प्रसन्नता काम देती है, ऐसे ही वर्ष के प्रारंभ में प्रसन्नता वर्ष भर आपको प्रसन्नता और सफलता देगी;

2. ब्रह्म वैवर्त पुराण में भगवान श्री कृष्ण से पूछा, हे जनार्दन! किस के दर्शन से प्रसन्नता और पुण्याई बढ़ती है और किस के दर्शन से खिन्नता या पाप बढ़ता है? आप इन बातों को अभी समझ लेना, दीवाली के दिन अथवा उसके एक दो दिन पहले ही प्रसन्नता का सामान जुटा लेना;

3. किस के दर्शन से प्रसन्नता होती है?

गाय के घी के दर्शन से प्रसन्नता होती है; गाय का दूध भी पुण्यमाय दर्शन है; तीर्थ, देव प्रतिमा पुण्यमय दर्शन है; सती स्त्री का दर्शन (सदभाव, देवी भाव से) पुण्यमय है; सन्यासी, यति , ब्रह्मचारी, और गाय माता और अग्नि और गुरुदेव का दर्शन पुण्यमय माना जाता है;


हाथी, गजराज, सिंह, और श्वेत घोड़े का दर्शन पुण्यमय माना गया है; पोपट, कोकिला, हंस, मोर, बछङे सहित गाय का दर्शन पुण्यमय है;

पुण्यमय दर्शन वर्ष के प्रथम दिन हों, उसका ज़रा आप लोग ध्यान रखना; इस बात को एक दूसरे को बता देना जिस से भारत हमारा विशेष पुण्यमय हो जाए; पुण्यमय आप दर्शन करना;

तीर्थ यात्री जो ईमानदारी से तीर्थ यात्रा कर के आया है, दिखावे बिना की, उसका दर्शन भी पुण्यमय है; सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा का दर्शन पुण्यमय है;

तुलसी जी का दर्शन भी पुण्यमय माना जाता है; सफेद फूलों का दर्शन (सुगंधित) वे भी पुण्यमय दर्शन माना जाता है; धान्य का दर्शन, गाय के दूध का, दही का, मधु का, और पानी से भरे हुए गंगा-जल अथवा पानी से भरे हुए जल का दर्शन भी पुण्यमय माना जाता है;

सुबह सुबह अपना दीदार और अपने ठाकुर जी का दीदार आईने में हो जाए, बड़ा पुण्यमय दर्शन होता है; श्वेत फूलों की माला का दर्शन पुण्यमय माना जाता है; चाँदी का दर्शन और नदी, तालाब, अथवा समुद्र का दर्शन भी आह्लाद और पुण्य देने वाला है; फूलों की वाटिका का दर्शन भी आह्लाद और सत्त्व-गुण देता है;

शास्त्रों ने कहा "सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम्"; श्री कृष्ण ने कहा "पुण्यो गंधाम पृथ्व्यां च"; जो पर्फ्यूम है वो पुण्यमयी गंध नहीं है, वो विकारमयी गंध है; लेकिन यह कुदरती फूलों की गंध पुष्टि-वर्धक है, आयुष्य बढ़ाती है, ज्ञान तंतुओं को ताज़ा तवाना रखती है; इसलिए ठाकुर जी को जो फूल चढ़ाते हैं, उनका घूम फिर कर अपने को ही फायदा मिलता है;

कस्तूरी, चंदन और चंद्रमा का दर्शन पुण्यमय माना जाता है; कुमकुम का दर्शन पुण्यमय माना जाता है; अक्षय वट और पीपल का दर्शन पुण्यमय है; देवालय और देव संबंधी जलाशय का दर्शन पुण्यमय माना जाता है;

श्री कृष्ण कह रहे हैं, उनकी बात में संदेह ना करना, इन पुण्यमय वस्तुओं का दर्शन करना आप चालू कर दो और वर्ष के प्रथम दिन तो इसका दर्शन ज़रूर करना नहीं तो मारूँगा [गुरुदेव हँसते हुए ] हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं और दम मारकर भी कहते हैं की ऐसे पुण्यमय दर्शन नहीं करोगे तो मारूँगा ...नारायण नारायण नारायण...

मूँगा, रजत, स्फटिक, मणि, कुशा, और गंगाजी की मिट्टी का दर्शन भी पुण्यमय कहा श्री कृष्ण ने;

तांबे का दर्शन; स्वास्थ्य के लिए वरदान है तांबे में रखे हुए पानी का उपयोग करना; भगवान ने धन संपत्ति दी है, तो दूध उबलता है उस में सोने की चूड़ी डाल दो, अथवा सोने का जो कुछ हो घर में वो डाल दो - पुष्टि वर्धक है, बुद्धि वर्धक है;

पुराण पुस्तक, श्रेष्ठ पुस्तक, शास्त्रों का दर्शन भी पुण्यमय है; तो आप वर्ष के प्रथम दिन भागवत पुराण, शिव पुराण, महाभारत हो, वेद पुराण हो, जो भी हो, उन के दर्शन कर लेना;

सोने/चाँदी के बर्तन में घी का दर्शन हो जाए तो अच्छा है, नहीं तो काँसे की ताली में भी कर सकते हैं; गौ-दुग्ध, गौ-मूत्र (गौ झरण अर्क), गौ-गोबर का दर्शन भी पुण्यमय माना है;

तुलसी के पत्ते और गौ-मूत्र सात दिन तक बासी नहीं माना जाता है; गाय की खुरों की धूलि का दर्शन भी अच्छा होता है; गौशाला के गौ खुरों का दर्शन भी मंगलमय माना जाता है;

पकी हुई खेती से भरे हुए खेत और सौभाग्यवती गहने गाँठे और सिंदूर के तिलक से संपन्न नारी देवी का दर्शन (सदभाव से, जगदंबा भाव से) भी पुण्यमय माना जाता है;

हरी दूर्वा, तांदुल, शुद्ध सात्त्विक भोजन, उत्तम अन्न का दर्शन भी पुण्यमय माना जाता है;

4. किन वस्तु, व्यक्तियों के दर्शन से पाप होता है?

जिन के दर्शन से पुण्य होता है वो सुन लिया, और जिनके दर्शन से पाप होता है, उन से सावधान रहना;

गौ, ब्राह्मण के हत्यारे का दर्शन पाप देने वाला होता है; हरे पीपल का घात करने वाला, काटने वाले का दर्शन पाप उपजाता है;

जो कृतघ्न व्यक्ति है उसके दर्शन से पाप लगता है; भगवद् मूर्ति को तोड़ने वाले का दर्शन, माता-पिता का हत्यारा का दर्शन पाप देता है; विश्वास-घाती और झूठी गवाही देने वाला का दर्शन पाप देता है; अतिथि के साथ छल करने वाले का दर्शन पापमयी है; देवता/ब्राह्मण के धन का अपहरण करने वाला, शिव/विष्णु की निंदा करने वाला और दीक्षा-रहित (निगुरा) आचार-हीन का दर्शन पापमय होता है; देवता के चढ़ावे और पूजा पर जो जीवित रहता है उसका दर्शन भी उन्नति कारक नहीं, पापमय माना गया है; नककटी नारी (जो आया सो करने लगी) का दर्शन भी वर्जित कहा है; देवता/ब्राह्मण की निंदा करने वाला, और पति भक्ति विहीन, विष्णु भक्ति से शून्य, व्यभिचारिणी स्त्री का दर्शन भी पापमय माना गया है; चोर, मिथ्या-वाडिनी, और शरणागतों को जो सताता है, माँस की चोरी करने वाले का दर्शन पापमय माना जाता है;

5. आप वर्ष के प्रथम दिन पुण्यमय दर्शन के लिए अगर हीरा, सुवर्ण, चाँदी का बर्तन हो, गाय का घी हो, पुराण का दर्शन;

सब चीज़ें याद रख पाओ ना रख पाओ, जितनी 2-4 चीज़ें याद रह जायें - घी तो याद रह सकता है, दीप, तीर्थ-यात्री का दर्शन;

और उन पुण्यमय दर्शनों में पुण्यों के दाता और पुण्यों के साक्षी प्रभु का चिंतन मिला दोगे, तो दर्शन आए हाय! हरि हरि! प्रभु प्रभु! आनंद आनंद!;

गाय को तो देखो लेकिन गाय में चेतना तेरी है, ऐसे करके दर्शन करो, तो मुझे लगता है और अच्छा पुण्यमय हो जाएगा; तुलसी का दर्शन, पीपल का दर्शन, यह तो आप आसानी से कर सकते हैं; आइने का दर्शन सुबह सुबह मंगलमय भाव से; अपने कमरे में ऐसे चित्र रखो की महापुरुषों का दर्शन हो जाए; और वर्ष के प्रथम दिन इस बात की सावधानी रखना;

जैसे संक्रामक रोग ना चाहे तो भी चिपक जाता है, ऐसे ही ना चाहते हुए भी इस वर्ष यह पुण्य सब को चिपक जाए जिस से देश और व्यक्ति का जीवन सुखमय हो, आनंदमय हो, आरोग्यमय हो;

वर्ष के प्रथम दिन प्रभु से कहो, बिन फेरे हम तेरे और हास्य प्रयोग ज़रूर से करना;

Saturday, October 17, 2009

दीपावली mantra

दीपावली पर लक्ष्मीप्राप्ति की सचोट साधना-विधियाँ
धनतेरस से आरंभ करें


सामग्रीः दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र।



विधिः साधक अपने सामने गुरुदेव व लक्ष्मी जी के फोटो रखे तथा उनके सामने लाल रंग का वस्त्र (रक्त कंद) बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती शंख रख दे। उस पर केसर से सतिया बना ले तथा कुमकुम से तिलक कर दे। बाद में स्फटिक की माला से मंत्र की 7 मालाएँ करे। तीन दिन तक ऐसा करना योग्य है। इतने से ही मंत्र-साधना सिद्ध हो जाती है। मंत्रजप पूरा होने के पश्चात् लाल वस्त्र में शंख को बाँधकर घर में रख दें। कहते हैं – जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी।



मंत्रः ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ॐ नमः।



अनुक्रम

दीपावली से आरंभ करें


दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की साधनाएँ करते हैं। हम यहाँ अपने पाठकों को लक्ष्मीप्राप्ति की साधना का एक अत्यन्त सरल व मात्र त्रिदिवसीय उपाय बता रहे हैं।



दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में धूप, दीप व अगरबत्ती जलाकर शरीर पर पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला नित्य प्रातःकाल निम्न मंत्र की दो-दो मालाएँ जपें।



ॐ नमः भाग्यलक्ष्मी च विद् महे।

अष्टलक्ष्मी च धीमहि।

तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात्।



दीपावली लक्ष्मीजी का जन्मदिवस है। समुद्र मन्थन के दौरान वे क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं। अतः घर में लक्ष्मी जी के वास, दरिद्रता के विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह हेतु यह साधना करने वाले पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।

माँ लक्ष्मी मंत्र

माँ लक्ष्मी मन्त्र
दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी तो कुबेर बन गए ,जो धनाढ्य लोगो से भी बड़ा धनाढ्य है..सभी धन का स्वामी है..ऐसा इस काल का महत्त्व है.. दिया जलाके जाप कराने वाले को धन, सामर्थ्य , ऐश्वर्य पाए…ध्रुव , रजा प्रियव्रत ने भी आज की रात को लक्ष्मी प्राप्ति का , वैभव प्राप्ति का जप किया था…मन्त्र बहुत सरल है…मन्त्र का फल प्राप्त करने के लिए श्रद्धा से मंत्र सुने -

माँ लक्ष्मी मन्त्र :-


श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा

Thursday, October 15, 2009

मंत्र साधना दीपावली पे

Mantra Sadhana



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Maa Lakshmi Mantra



माँ लक्ष्मी मन्त्र :-


श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा

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दीपावली पर लक्ष्मीप्राप्ति की सचोट साधना-विधियाँ
धनतेरस से आरंभ करें


सामग्रीः दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र।



विधिः साधक अपने सामने गुरुदेव व लक्ष्मी जी के फोटो रखे तथा उनके सामने लाल रंग का वस्त्र (रक्त कंद) बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती शंख रख दे। उस पर केसर से सतिया बना ले तथा कुमकुम से तिलक कर दे। बाद में स्फटिक की माला से मंत्र की 7 मालाएँ करे। तीन दिन तक ऐसा करना योग्य है। इतने से ही मंत्र-साधना सिद्ध हो जाती है। मंत्रजप पूरा होने के पश्चात् लाल वस्त्र में शंख को बाँधकर घर में रख दें। कहते हैं – जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी।

मंत्रः ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ॐ नमः।




दीपावली से आरंभ करें



दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की साधनाएँ करते हैं। हम यहाँ अपने पाठकों को लक्ष्मीप्राप्ति की साधना का एक अत्यन्त सरल व मात्र त्रिदिवसीय उपाय बता रहे हैं।





दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में धूप, दीप व अगरबत्ती जलाकर शरीर पर पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला नित्य प्रातःकाल निम्न मंत्र की दो-दो मालाएँ जपें।




ॐ नमः भाग्यलक्ष्मी च विद् महे।

अष्टलक्ष्मी च धीमहि।

तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात्।




दीपावली लक्ष्मीजी का जन्मदिवस है। समुद्र मन्थन के दौरान वे क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं। अतः घर में लक्ष्मी जी के वास, दरिद्रता के विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह हेतु यह साधना करने वाले पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।

Tuesday, October 13, 2009

रमा एकादशी

रमा एकादशी

युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में ‘रमा’ नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है ।

पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे ।

अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करनेवाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई । राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया ।

एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि: ‘एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे ।’ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा : ‘प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।’

चन्द्रभागा बोली : प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते । प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी । इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये ।

शोभन ने कहा : प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैं भी उपवास करुँगा । दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया । चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।

नृपश्रेष्ठ ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए । वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे ।

एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये । राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये ।
शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया । फिर क्रमश : अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।

सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं । आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसीने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?

शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसीका व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है । ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है । आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।

शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।

सोमशर्मा बोले : शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा । इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है । तुम उसको स्थिर बनाओ ।

चन्द्रभागा ने कहा : ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है । आप मुझे वहाँ ले चलिये । मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये ।

वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी ।

अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया । तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये । जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी,

तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा ।’

नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है ।

राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है । यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है ।