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Friday, January 25, 2013

मन

मन के स्वभाव को अगर हम समझ लें, तब मन हमें परेशान नहीं करेगा, क्योंकि मन कभी हमारा मित्र होता है, कभी शत्रु। कभी यह हमें छोटा बना देता है, कभी बड़ा। कभी करुणा से भर जाता है, कभी क्रोध से। कभी यह चींटी जैसा छोटा हो जाता है, कभी हाथी जैसा बड़ा। कभी किसी के फेवर में आ जाता है, कभी उसका विरोधी बन जाता है। कभी एक-एक रुपया बचाने की बात करता है, कभी सैकड़ों एकदम लुटा देता है। कभी राग करता है, कभी द्वेष करने लगता है। कभी प्यार से भर जाता है, कभी घृणा से।

कभी पाप कर्मों की ओर जाना चाहता है, कभी पुण्य कर्मों की ओर। इस तरह से मन कभी ऊंचाइयों की ओर ले जाता है, कभी नीचे गिरा देता है।

अगर जिंदगी में सब कुछ अनुकूल है तो भी मन दुख को तलाशता रहता है। मन कभी खाली नहीं रहता। या तो हम मन को कहीं लगाएं वरना मन खुद ही भूत या भविष्यकाल में दौड़ जाता है। पहले कुछ खराब घटा हो, उसके बारे में सोचकर दुखी होने लगता है कि ऐसा न होता तो ऐसा हो जाता, ऐसा न बोलता, तो अपने पराए न होते

अपनों के साथ-साथ सबके लिए मन में अच्छी भावना रखनी जरूरी है। जो भी आपके सामने आए, उसके लिए भी प्रेम और जिसका ख्याल आए, उसके लिए भी प्रेम। भले आप किसी के लिए सीधे तौर पर कुछ मदद न कर पाएं, लेकिन अपने भीतर उसके लिए अच्छा भाव तो रख ही सकते हैं।

हमारी कोशिश इस मन को ट्रेंड करने की होनी चाहिए क्योंकि मन बिना सिखाए कुछ नहीं सीखता। इसके लिए अभ्यास की जरूरत होती है और अभ्यास है मन को वर्तमान में रखना, हमेशा मुस्कुराते रहना, सबके प्रति शुक्रिया का भाव रखना। इससे मन धीरे-धीरे सधने लगता है और अंदर आत्मविश्वास, सकारात्मकता व उमंग पैदा होने लगती है। फिर जीवन सुखमय हो जाता है।

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