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Monday, December 7, 2009

प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ भर देती जिंदगी के अभाव ये बेटियाँ

बापू की आन में   पति की शान में   चाचा, ताऊ और जेठ, देवर  के भार में

मन के गुबार को, सद्‍भावना के नीचे  दफना रही हैं ये बेटियाँ

कुल की लाज में  सपूतों के निर्माण में अपने अरमान को

मौन में  पी रही हैं ये बेटियाँ  कला की आड़ में सौंदर्य के गुमान में

रंगमंच हो या टीवी बेटी हो या बीवी  अखबार हो या पत्रिका

उघाड़ी जा रही हैं ये बेटियाँ  आग की आँच पर  चौपड़ की बिसात पर

सीता सावित्री के नाम पर  हर युग में दाँव पर लगी हैं ये बेटियाँ

तुम कुछ भी कहो  कुछ भी करो  हर युग में मिटती आई है बेटियाँ

घर को सँवारती  जग को सुधारती  कभी न हारती

नया जन्म फिर फिर  लेती हैं बेटियाँ 

नया जन्म फिर फिर  देती हैं बेटियाँ

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