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Monday, January 25, 2010

जया एकादशी

युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : भगवन् ! कृपा करके यह बताइये कि माघ मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है, उसकी विधि क्या है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजेन्द्र ! माघ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘जया’ है । वह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है । पवित्र होने के साथ ही पापों का नाश करनेवाली तथा मनुष्यों को भाग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है । इतना ही नहीं , वह ब्रह्महत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करनेवाली है । इसका व्रत करने पर मनुष्यों को कभी प्रेतयोनि में नहीं जाना पड़ता । इसलिए राजन् ! प्रयत्नपूर्वक ‘जया’ नाम की एकादशी का व्रत करना चाहिए ।
एक समय की बात है । स्वर्गलोक में देवराज इन्द्र राज्य करते थे । देवगण पारिजात वृक्षों से युक्त नंदनवन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे । पचास करोड़ गन्धर्वों के नायक देवराज इन्द्र ने स्वेच्छानुसार वन में विहार करते हुए बड़े हर्ष के साथ नृत्य का आयोजन किया । गन्धर्व उसमें गान कर रहे थे, जिनमें पुष्पदन्त, चित्रसेन तथा उसका पुत्र - ये तीन प्रधान थे । चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था । मालिनी से एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवन्ती के नाम से विख्यात थी । पुष्पदन्त गन्धर्व का एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यवान कहते थे । माल्यवान पुष्पवन्ती के रुप पर अत्यन्त मोहित था । ये दोनों भी इन्द्र के संतोषार्थ नृत्य करने के लिए आये थे । इन दोनों का गान हो रहा था । इनके साथ अप्सराएँ भी थीं । परस्पर अनुराग के कारण ये दोनों मोह के वशीभूत हो गये । चित्त में भ्रान्ति आ गयी इसलिए वे शुद्ध गान न गा सके । कभी ताल भंग हो जाता था तो कभी गीत बंद हो जाता था । इन्द्र ने इस प्रमाद पर विचार किया और इसे अपना अपमान समझकर वे कुपित हो गये ।

अत: इन दोनों को शाप देते हुए बोले : ‘ओ मूर्खो ! तुम दोनों को धिक्कार है ! तुम लोग पतित और मेरी आज्ञाभंग करनेवाले हो, अत: पति पत्नी के रुप में रहते हुए पिशाच हो जाओ ।’

इन्द्र के इस प्रकार शाप देने पर इन दोनों के मन में बड़ा दु:ख हुआ । वे हिमालय पर्वत पर चले गये और पिशाचयोनि को पाकर भयंकर दु:ख भोगने लगे । शारीरिक पातक से उत्पन्न ताप से पीड़ित होकर दोनों ही पर्वत की कन्दराओं में विचरते रहते थे । एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी पिशाची से कहा : ‘हमने कौन सा पाप किया है, जिससे यह पिशाचयोनि प्राप्त हुई है ? नरक का कष्ट अत्यन्त भयंकर है तथा पिशाचयोनि भी बहुत दु:ख देनेवाली है । अत: पूर्ण प्रयत्न करके पाप से बचना चाहिए ।’

इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वे दोनों दु:ख के कारण सूखते जा रहे थे । दैवयोग से उन्हें माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी की तिथि प्राप्त हो गयी । ‘जया’ नाम से विख्यात वह तिथि सब तिथियों में उत्तम है । उस दिन उन दोनों ने सब प्रकार के आहार त्याग दिये, जल पान तक नहीं किया । किसी जीव की हिंसा नहीं की, यहाँ तक कि खाने के लिए फल तक नहीं काटा । निरन्तर दु:ख से युक्त होकर वे एक पीपल के समीप बैठे रहे । सूर्यास्त हो गया । उनके प्राण हर लेने वाली भयंकर रात्रि उपस्थित हुई । उन्हें नींद नहीं आयी । वे रति या और कोई सुख भी नहीं पा सके ।

सूर्यादय हुआ, द्वादशी का दिन आया । इस प्रकार उस पिशाच दंपति के द्वारा ‘जया’ के उत्तम व्रत का पालन हो गया । उन्होंने रात में जागरण भी किया था । उस व्रत के प्रभाव से तथा भगवान विष्णु की शक्ति से उन दोनों का पिशाचत्व दूर हो गया । पुष्पवन्ती और माल्यवान अपने पूर्वरुप में आ गये । उनके हृदय में वही पुराना स्नेह उमड़ रहा था । उनके शरीर पर पहले जैसे ही अलंकार शोभा पा रहे थे ।

वे दोनों मनोहर रुप धारण करके विमान पर बैठे और स्वर्गलोक में चले गये । वहाँ देवराज इन्द्र के सामने जाकर दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया ।

उन्हें इस रुप में उपस्थित देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ ! उन्होंने पूछा: ‘बताओ, किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का पिशाचत्व दूर हुआ है? तुम मेरे शाप को प्राप्त हो चुके थे, फिर किस देवता ने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है?’

माल्यवान बोला : स्वामिन् ! भगवान वासुदेव की कृपा तथा ‘जया’ नामक एकादशी के व्रत से हमारा पिशाचत्व दूर हुआ है ।

इन्द्र ने कहा : … तो अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधापान करो । जो लोग एकादशी के व्रत में तत्पर और भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत होते हैं, वे हमारे भी पूजनीय होते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए । नृपश्रेष्ठ ! ‘जया’ ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करनेवाली है । जिसने ‘जया’ का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया । इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

Thursday, January 21, 2010

om, if you listen bapuji's satsang anwer these quetions, sabse uccha padd kaunsa hai, sabse ucha sukh kya hai, aisaa kya hai jisko paane ke baad dukho kee koi daal nahi galtee, bapuji ke anusar hamare jeevan kaa udeshy kya honaa chahiye, aisaa kya hai jisko paane/karne ke baad koi kartavy nahi rehjaataa



1-sabse uchha pad atma ka hai 2-sabse uchha sukh atmsukh hai 3-apne atma ko janne ke bad sansar ke sare dukh ek khel lgte hai 4-bapuji ke anusar hamare jiwan ka udesay atm ya parmatm prapti honi chahiye 5- ek bar atmsakshatkar kar lo uske bad koe kar karna ses nahi bachata chahe ap ap jangal me baito ya sansar me updesh karo

Monday, January 18, 2010

*[19th Jan Tues Angar Chaturthi]*



Mangalwar ki chaturthi hai..surya grahan tulya labh hota hai ..jap, dhyan


upvaas ka fal lakh guna hota hai


- mangal dev ka poojan karne waleon logon ko. .bina namak ka bhojan karein


- mangal dev ka mansik ahavan karo...


- chandrama mein ganpati ki bhavna karke argya dein


kitna bhi karzdaar ho ..kaam dhandhe se berozgaar ho ..rozi roti to milegi


aur karze se chutkara


karze se mukti pana ho to:


faltu kharcha aur credit card se jaan chudao ..bhari byaz se jaan chudao


jo bhari byaz lete hain ..unko bolo ki byaz rok do ..rakam denge pakki baat


hai...kuch apna purusharth karo ..kuch vyavharik kala kaushal karo...


karze se doobe hue log 19th jan ka fyada uthao






*[20th Jan Wed Basant Panchami]*


Sarswati ma ka avir bhao diwas hai


- apne jo bhi padte hoon ..shastra adi ..ya jo bhi granth uska adar satkar


karo ..


- pen kalam adi ka adar satkar poojan karo


- aur brohmadhya mein surya dev ka dhyan karo...jisse padai likhai mein


aagey badogey


- vidhya premi -- saraswatya mantra ka jap, saraswati ji ki dhyan maun aadi


se fyada uthayein



*[21 Jan - Daridya Haran Shasthi]*


Bhavishya Puran ke anusar : pake chawal, doodh aur ghee aur shakkar milakar


brahaman, gareeb, gay (cow) aadi ko daan karna chahiye ...daridrata nivratti


ke sankalp se issey bhi daridrata door hoti hai



[*22 Jan - Rath Saptami]*


Surya dev ke nimit ...snan daan ...hom poojan ..satkarm ...karein to hazaar


guna fal dayi mana gaya hai ...


Monday, January 11, 2010

ग्रहण काल : १५ जनवरी , सुबह ११.०५ से दोपहर ३.४० तक

ग्रहण के समय निर्देश


ग्रहण की तिथि : 15th Jan 2010



ग्रहण का समय : 11.05 AM IST IST से 3.40PM IST तक





10th Jan. Hoshangabad: ग्रहण के समय क्या करना, क्या ना करना....यह अच्छी तरह से याद रखना है....यह शास्त्र की बात है ......इसमें किसी का लिहाज नहीं होता है l







ना करने योग्य :-





कोई सो लेता है तो रोग पकड़ेगा पक्का....ग्रहण के समय किसी भी कीमत पे सोना नहीं है l

ग्रहण के समय पेशाब करोगे तो घर में दरिद्रता आएगी.....इससे सावधान रहो l

ग्रहण के समय सो गए तो पेट में कृमि रोग पकड़ लेता है l

ग्रहण के समय सम्भोग करेगा वो सूअर योनि में जायेगा.....बिलकुल पक्की बात है l

ग्रहण के समय धोखाधड़ी ..... ठगाई करेगा .....सर्प की योनि में जाना पड़ेगा l

ग्रहण के समय जीव जंतु या किसीकी हत्या हो गयी .......तो नारकीय योनिओं में भटकना पड़ेगा l

ग्रहण के समय भोजन अथवा मालिश..... कुष्ट रोगी के शरीर में जाना पड़ेगा l

करने योग्य :-





ग्रहण के समय मौन रहोगे, जप करोगे, ध्यान करोगे...... तो १०,००० गुना फल होगा l सूर्य ग्रहण के समय हज़ार काम छोड़ कर मौन और जप करिए l

सूर्य ग्रहण लगने के पहले खान - पान ऐसा करिए कि आपको बाथरूम में ना जाना पड़े l

भगवान सूर्य का भ्रूमध्य में ध्यान करने से बच्चे बुद्धिमान बनेंगे l



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Solar Eclipse Date: 15th Jan 2010

Eclipse Begin: 11.05 AM IST, Eclipse End: 3.40PM IST IST





Important Note: What to do and what not to do at the time of an Eclipse, this has to be remembered by heart. These maxims are from the scriptures (shastras); there are no exceptions to this. [The rules are, however, relaxed for children, old aged people or one who is ill (unwell).]



Don’ts :-



1. If someone sleeps during an eclipse, then diseases will surely catch him. Don't sleep at any cost during an eclipse.



2. Urinating during an eclipse will lead to poverty at home. Beware of this.



3. If one sleeps during the time of eclipse, it will lead to ‘krimi rog’ (worms) in stomach.



4. One who has sex during an eclipse will go to a pig's body in next life. This is absolutely sure.



5. If one does fraud or cheating during an eclipse, then he has to go to a snake's body in the next life.



6. If one does Jeev-hatya (killing of an insect, animal or anyone else) during an eclipse, then he has to wander in hell.



7. Taking food or doing massage during an eclipse causes the leprosy disease (kushthh rog). Do not eat during the eclipse and sootak period (which begins 9 hours before the Lunar eclipse and 12 hours before the Solar eclipse).



Do’s :-



1. If you observe Maun (silence) during an eclipse, perform Japa (chant) & Dhyan (meditation), then, it will be 10,000 times more fruitful than a normal day. So, one should set aside thousands of other chores during an eclipse & perform Japa (chant) and observe Maun (silence).



2. Before an eclipse, eat or drink in such a way that you do not need to go to the washroom frequently.



3. By meditating on the Sun God in the bhrikuti (space between the eyebrows), children will become intelligent.



(Excerpts from the Satsang of Pujya Bapuji)
हम जगत को ठीक कर सकें यह हमारे हाथ की बात नहीं है। सबको हमारी शुभ इच्छा के अनुसार चलायें यह हमारे हाथ की बात नहीं है लेकिन सबमें बैठा हुआ परमात्मा निर्लेप नारायण है, असंग है, बाकी सब प्रकृति की लीला है ऐसा समझकर यथाशक्ति सबका हित करना और सुखद विचारों से सुखी रहना हमार हाथ की बात है।

Sunday, January 10, 2010

Time: 11.05 to 15.40 Surya Grahan 15 jan 2010 sutak start 11.56 Thursday night

॥ ग्रहण विधि निषेध ॥

22 जुलाई-09 को सदी का सबसे बड़ा पूर्ण सूर्यग्रहण था। इसके 7 माह बाद ही 15 जनवरी 2010 को इस सदी का सबसे बड़ा कंगन सूर्यग्रहण होने जा रहा है। इसके बाद इतना लंबा कंगन सूर्यग्रहण 1033 वर्ष बाद यानी 24 दिसंबर 3043 को दिखाई देगा।


ग्रहण की अधिकतम चरम अवधि हिन्द महासागर में 11 मिनट 8 सेकंड की रहेगी। ग्रहण की चरम अवस्था को दक्षिण भारत के कुछ शहरों रामेश्वरम, कन्याकुमारी इत्यादि स्थानों से देखा जा सकता है। इन स्थानों पर ग्रहण का कंगन 10 मिनट तक दिखाई देगा। मप्र सहित देश के अन्य भागों से ग्रहण का आंशिक नजारा ही दिखाई देगा। ग्रहण 15 जनवरी को प्रातः 11 से दोपहर 3 बजे के मध्य दिखेगा। उज्जैन में ग्रहण की अवधि दोपहर 11.35 से 3.11 तक रहेगी।


ग्रहण का सूतक गुरुवार की रात 11:56 से लग जाएगा,जो ग्रहण के मोक्ष के बाद समाप्त होगा। सूतक काल में जहाँ देव दर्शन वर्जित माना गया है,वहीं मंदिरों के पट भी रात्रि में ही बंद कर दिए जाएँगे। इस दिन जलाशयों, नदियों व मंदिरों में राहू, केतु व सूर्य के मंत्र का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म होता है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते है। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों के कुश अथवा तुलसी डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।

ग्रहण के दौरान भोजन न करने के विषय में जीव-विज्ञान विषय के ÷प्रोफेसर टारिंस्टन' ने पर्याप्त अनुसंधान करके सिद्ध किया है कि सूर्य-चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा सकता है।

भारतीय धर्म विज्ञानवेत्ताओं का मानना है कि सूर्य-चंद्र ग्रहण लगने से दस घंटे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है। अंतरिक्षीय प्रदूषण के समय को सूतक काल कहा गया है। इसलिए सूतक काल और ग्रहण के समय में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गई है। चूंकि ग्रहण से हमारी जीवन शक्ति का हास होता है और तुलसी दल (पत्र) में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे अधिक होती है, इसलिए सौर मंडलीय ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्त करने के लिए भोजन तथा पेय सामग्री में तुलसी के कुछ पत्ते डाल दिए जाते हैं। जिसके प्रभाव से न केवल भोज्य पदार्थ बल्कि अन्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्त बने रह सकते हैं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चंद्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की संतान हैं। चंद्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चंद्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं।

ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान्‌ का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्‌मण को दान देने का विधान है। कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद डोम को दान देने का अधिक माहात्म्य बताया गया है, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना गया है।

सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं । ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिए । ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है । 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।

- Source - http://www.onlinemandir.com/suryagarhan.html

http://www.hariomgroup.org/


Suyar Grahan timing in Dubai Partial Solar Eclipse begins at 09:20:26 hrs on January 15, 2010


Maximum Eclipse at 10:51:08 hrs

Partial Eclipse ends at 12:29:34 hrs

Sunday, January 3, 2010

जिंदगी की इस धारा में


किस किसकी नाव पार लगाओगे।

समंदर से गहरी है इसकी धारा

लहरे इतनी ऊंची कि

आकाश का भी तोड़ दे तारा

अपनी सोच को इस किनारे से

उस किनारे तक ले जाते हुए

स्वयं ही ख्यालों में डूब जाओगे।

दूसरे को मझधार से तभी तो निकाल सकते हो

जब पहले अपनी नाव संभाल पाओगे।