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Sunday, January 3, 2010

जिंदगी की इस धारा में


किस किसकी नाव पार लगाओगे।

समंदर से गहरी है इसकी धारा

लहरे इतनी ऊंची कि

आकाश का भी तोड़ दे तारा

अपनी सोच को इस किनारे से

उस किनारे तक ले जाते हुए

स्वयं ही ख्यालों में डूब जाओगे।

दूसरे को मझधार से तभी तो निकाल सकते हो

जब पहले अपनी नाव संभाल पाओगे।

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