पुराने जमाने में एक राजा हिम हुए। उनके यहां पुत्र हुआ, तो उसकी जन्म-कुंडली बनाई गई। ज्योतिषियों ने कहा कि राजकुमार अपनी शादी के चौथे दिन सांप के काटने से मर जाएगा। इस पर राजा चिंतित रहने लगे। राजकुमार की उम्र 16 साल की हुई, तो उसकी शादी एक सुंदर, सुशील और समझदार राजकुमारी से कर दी गई। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। राजकुमारी को भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के विषय में पता चल गया।
राजकुमारी काफी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली थीं। उसने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए गए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया। कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा गया यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।
इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी, यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को 'यमदीपदान' भी कहते हैं। भक्तजन इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी करते हैं।
विष्णु का धनवंतरि अवतार लोगों के बीच एक और कथा भी प्रचलित है। जब सुर और असुर मिलकर सागर मंथन कर रहे थे, तो कई बहुमूल्य चीजों की प्राप्ति हुई। इनमें सबसे अहम था अमृत। यह अमृत कलश धनवंतरि के हाथों में था। धनवंतरि को यूं तो देवताओं का वैद्य कहते हैं, पर उनमें भगवान विष्णु का अंश भी मौजूद था। धनवंतरि की उत्पत्ति के उपलक्ष्य में ही हम धनतेरस मनाते हैं।
Wednesday, November 3, 2010
Tuesday, November 2, 2010
मोह और प्रेम
हमें संसार में बांधे रखने का कार्य मोह करता है, क्योंकि यह मन का एक विकार है।
जब प्रेम गिने-चुने लोगों से होता है, हद में होता है , सीमित होता है, तब वह मोह कहलाता है। इसके संस्कार चित्त में इकट्ठा होते रहते हैं, जिससे इसकी जड़ें पक्की हो जाती हैं और कई बार चाह कर भी मोह को नहीं छोड़ पाते। हम मोह को ही प्रेम मान लेते हैं, जैसे युवक-युवती आपस में आसक्त होकर प्रेम करते हैं और उसको वे प्रेम कहते हैं, जबकि वह प्रेम नहीं, मोह है। मां-बाप जब केवल अपने बच्चे को प्रेम करते हैं, तो वह भी मोह ही कहलाता है। मोह का मतलब होता है आसक्ति, जो गिने चुने उन लोगों या चीजों से होती है, जिनको हम अपना बनाना चाहते हैं, जिनके पास हम अधिक से अधिक समय गुजारना चाहते हैं और जहां हमें सुख मिलने की उम्मीद हो या सुख मिलता हो। यहां मैं और मेरे की भावना बड़ी प्रबल रहती है।
एक होता है लौकिक प्रेम, अर्थात सांसारिक प्रेम और दूसरा होता है अलौकिक प्रेम अर्थात इश्वरीय प्रेम। सांसारिक प्रेम मोह कहलाता है और इश्वरीय प्रेम, प्रेम कहलाता है। इसी मोह के कारण व्यक्ति कभी सुखी और कभी दुखी होता रहता हैं। मोह के कारण ही द्वेष पैदा होता है। यह मोह भी जन्म मरण का कारण है, क्योंकि इसके संस्कार बनते हैं, लेकिन इश्वरीय प्रेम के संस्कार नहीं बनते, बल्कि प्रेम तो चित्त में पड़े संस्कारों के नाश के लिए होता है।
प्रेम का अर्थ है सबके लिए मन में एक जैसा भाव, जो सामने आए उसके लिए भी प्रेम, जिसका ख्याल भीतर आए उसके लिए भी प्रेम। परमात्मा की बनाई प्रत्येक वस्तु से एक जैसा प्रेम। जैसे सूर्य सबके लिए एक जैसा प्रकाश देता है, वह भेद नहीं करता, जैसे हवा भेद नहीं करती, नदी भेद नहीं करती, ऐसे ही हम भी भेद न करें। मेरा-तेरा छोड़कर सबके साथ सम भाव में आ जाएं।
अतः अपने मोह को बढ़ाते जाओ, इतना बढ़ाओ कि सबके लिए एक जैसा भाव भीतर प्रकट होने लगे, फिर वह कब प्रेम में बदल जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। यही अध्यात्म का गूढ़ रहस्य है।
जब प्रेम गिने-चुने लोगों से होता है, हद में होता है , सीमित होता है, तब वह मोह कहलाता है। इसके संस्कार चित्त में इकट्ठा होते रहते हैं, जिससे इसकी जड़ें पक्की हो जाती हैं और कई बार चाह कर भी मोह को नहीं छोड़ पाते। हम मोह को ही प्रेम मान लेते हैं, जैसे युवक-युवती आपस में आसक्त होकर प्रेम करते हैं और उसको वे प्रेम कहते हैं, जबकि वह प्रेम नहीं, मोह है। मां-बाप जब केवल अपने बच्चे को प्रेम करते हैं, तो वह भी मोह ही कहलाता है। मोह का मतलब होता है आसक्ति, जो गिने चुने उन लोगों या चीजों से होती है, जिनको हम अपना बनाना चाहते हैं, जिनके पास हम अधिक से अधिक समय गुजारना चाहते हैं और जहां हमें सुख मिलने की उम्मीद हो या सुख मिलता हो। यहां मैं और मेरे की भावना बड़ी प्रबल रहती है।
एक होता है लौकिक प्रेम, अर्थात सांसारिक प्रेम और दूसरा होता है अलौकिक प्रेम अर्थात इश्वरीय प्रेम। सांसारिक प्रेम मोह कहलाता है और इश्वरीय प्रेम, प्रेम कहलाता है। इसी मोह के कारण व्यक्ति कभी सुखी और कभी दुखी होता रहता हैं। मोह के कारण ही द्वेष पैदा होता है। यह मोह भी जन्म मरण का कारण है, क्योंकि इसके संस्कार बनते हैं, लेकिन इश्वरीय प्रेम के संस्कार नहीं बनते, बल्कि प्रेम तो चित्त में पड़े संस्कारों के नाश के लिए होता है।
प्रेम का अर्थ है सबके लिए मन में एक जैसा भाव, जो सामने आए उसके लिए भी प्रेम, जिसका ख्याल भीतर आए उसके लिए भी प्रेम। परमात्मा की बनाई प्रत्येक वस्तु से एक जैसा प्रेम। जैसे सूर्य सबके लिए एक जैसा प्रकाश देता है, वह भेद नहीं करता, जैसे हवा भेद नहीं करती, नदी भेद नहीं करती, ऐसे ही हम भी भेद न करें। मेरा-तेरा छोड़कर सबके साथ सम भाव में आ जाएं।
अतः अपने मोह को बढ़ाते जाओ, इतना बढ़ाओ कि सबके लिए एक जैसा भाव भीतर प्रकट होने लगे, फिर वह कब प्रेम में बदल जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। यही अध्यात्म का गूढ़ रहस्य है।
प्रेम के बल पर
प्रेम के बल पर ही मनुष्य सुखी हो सकता है। बन्दूक पर हाथ रखकर अगर वह निश्चिन्त रहना चाहे तो वह मूर्ख है। जहाँ प्रेम है वहाँ ज्ञान की आवश्यकता है। सेवा में ज्ञान की आवश्यकता है और ज्ञान में प्रेम की आवश्यकत है। विज्ञान को तो आत्मज्ञान एवं प्रेम, दोनों की आवश्यकता है।
मानव बन मानव का कल्याण करो। बम बनाने में अरबों रुपये बरबाद हो रहे हैं। ....और वे ही बम मनुष्य जाति के विनाश में लगाये जाएँ !नेताओं और राजाओं की अपेक्षा किसी आत्मज्ञानी गुरु के हाथ में बागडोर आ जाय तो विश्व नन्दनवन बन जाये।
रोटी बनाते हो तो बिलकुल तत्परता से बनाओ। खाने वालों की तन्दरुस्ती और रूचि बनी रहे ऐसा भोजन बनाओ। कपड़े ऐसे धोओ कि साबुन अधिक खर्च न हो, कपड़े जल्दी फटे नहीं और कपड़ों में चमक भी आ जाये। झाड़ू ऐसा लगाओ कि मानो पूजा कर रहे हो। कहीं कचरा न रह जाये। बोलो ऐसा कि जैसा श्रीरामजी बोलते थे। वाणी सारगर्भित, मधुर, विनययुक्त, दूसरों को मान देनेवाली और अपने को अमानी रखने वाली हो। ऐसे लोगों का सब आदर करते हैं।
अपने से छोटे लोगों के साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करो। दीन-हीन, गरीब और भूखे को अन्न देने का अवसर मिल जाय तो चूको मत। स्वयं भूखे रहकर भी कोई सचमुच भूखा हो तो उसे खिला दो तो आपको भूखा रहने में भी अनूठा मजा आयेगा। उस भोजन खाने वाले की तो चार-छः घण्टों की भूख मिटेगी लेकिन आपकी अन्तरात्मा की तृप्ति से आपकी युगों-युगों की और अनेक जन्मों की भूख मिट जायेगी।
अपने दुःख में रोने वाले ! मुस्कुराना सीख ले।
दूसरों के दर्द में आँसू बहाना सीख ले।
जो खिलाने में मजा है आप खाने में नहीं।
जिन्दगी में तू किसी के काम आना सीख ले।।
मानव बन मानव का कल्याण करो। बम बनाने में अरबों रुपये बरबाद हो रहे हैं। ....और वे ही बम मनुष्य जाति के विनाश में लगाये जाएँ !नेताओं और राजाओं की अपेक्षा किसी आत्मज्ञानी गुरु के हाथ में बागडोर आ जाय तो विश्व नन्दनवन बन जाये।
रोटी बनाते हो तो बिलकुल तत्परता से बनाओ। खाने वालों की तन्दरुस्ती और रूचि बनी रहे ऐसा भोजन बनाओ। कपड़े ऐसे धोओ कि साबुन अधिक खर्च न हो, कपड़े जल्दी फटे नहीं और कपड़ों में चमक भी आ जाये। झाड़ू ऐसा लगाओ कि मानो पूजा कर रहे हो। कहीं कचरा न रह जाये। बोलो ऐसा कि जैसा श्रीरामजी बोलते थे। वाणी सारगर्भित, मधुर, विनययुक्त, दूसरों को मान देनेवाली और अपने को अमानी रखने वाली हो। ऐसे लोगों का सब आदर करते हैं।
अपने से छोटे लोगों के साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करो। दीन-हीन, गरीब और भूखे को अन्न देने का अवसर मिल जाय तो चूको मत। स्वयं भूखे रहकर भी कोई सचमुच भूखा हो तो उसे खिला दो तो आपको भूखा रहने में भी अनूठा मजा आयेगा। उस भोजन खाने वाले की तो चार-छः घण्टों की भूख मिटेगी लेकिन आपकी अन्तरात्मा की तृप्ति से आपकी युगों-युगों की और अनेक जन्मों की भूख मिट जायेगी।
अपने दुःख में रोने वाले ! मुस्कुराना सीख ले।
दूसरों के दर्द में आँसू बहाना सीख ले।
जो खिलाने में मजा है आप खाने में नहीं।
जिन्दगी में तू किसी के काम आना सीख ले।।
मन का नशा उतार डालिए
मन एक मदमस्त हाथी के समान है । इसने कितने ही ऋषि-मुनियों को खड्डे में डाल दिय है । आप पर यह सवार हो जाय तो आपको भूमि पर पछाड़कर रौंद दे । अतः निरन्तर सजग रहें । इसे कभी धाँधली न करने दें। इसका अस्तित्व ही मिटा दें, समाप्त कर दें ।
हाथ-से-हाथ मसलकर, दाँत-से-दाँत भींचकर, कमर कसकर, छाती में प्राण भरकर जोर लगाओ और मन की दासता को कुचल डालो, बेड़ियाँ तोड़ फेंको । सदैव के लिए इसके शिकंजे में से निकलकर इसके स्वामी बन जाओ ।
मन पर विजय प्राप्त करनेवाला पुरुष ही इस विश्व में बुद्धिमान् और् भाग्यवान है । वही सच्चा पुरुष है । जिसमें मन का कान पकड़ने का साहस नहीं, जो प्रयत्न तक नहीं करता वह मनुष्य कहलाने के योग्य ही नहीं । वह साधारण गधा नहीं अपितु मकरणी गधा है ।
वास्तव में तो मन के लिए उसकी अपनी सत्ता ही नहीं है । आपने ही इसे उपजाया है । यह आपका बालक है । आपने इसे लाड़ लड़ा-लड़ाकर उन्मत बना दिया है । बालक पर विवेकपूर्ण अंकुश हो तभी बालक सुधरते हैं । छोटे पेड़ की रक्षार्थ काँटों की बाड़ चाहिए । इसी प्रकार मन को भी खराब संगत से बचाने के लिए आपके द्वारा चौकीरुपी बाड़ होनी चाहिए ।
हाथ-से-हाथ मसलकर, दाँत-से-दाँत भींचकर, कमर कसकर, छाती में प्राण भरकर जोर लगाओ और मन की दासता को कुचल डालो, बेड़ियाँ तोड़ फेंको । सदैव के लिए इसके शिकंजे में से निकलकर इसके स्वामी बन जाओ ।
मन पर विजय प्राप्त करनेवाला पुरुष ही इस विश्व में बुद्धिमान् और् भाग्यवान है । वही सच्चा पुरुष है । जिसमें मन का कान पकड़ने का साहस नहीं, जो प्रयत्न तक नहीं करता वह मनुष्य कहलाने के योग्य ही नहीं । वह साधारण गधा नहीं अपितु मकरणी गधा है ।
वास्तव में तो मन के लिए उसकी अपनी सत्ता ही नहीं है । आपने ही इसे उपजाया है । यह आपका बालक है । आपने इसे लाड़ लड़ा-लड़ाकर उन्मत बना दिया है । बालक पर विवेकपूर्ण अंकुश हो तभी बालक सुधरते हैं । छोटे पेड़ की रक्षार्थ काँटों की बाड़ चाहिए । इसी प्रकार मन को भी खराब संगत से बचाने के लिए आपके द्वारा चौकीरुपी बाड़ होनी चाहिए ।
मन का नशा उतार डालिए
मन एक मदमस्त हाथी के समान है । इसने कितने ही ऋषि-मुनियों को खड्डे में डाल दिय है । आप पर यह सवार हो जाय तो आपको भूमि पर पछाड़कर रौंद दे । अतः निरन्तर सजग रहें । इसे कभी धाँधली न करने दें। इसका अस्तित्व ही मिटा दें, समाप्त कर दें ।
हाथ-से-हाथ मसलकर, दाँत-से-दाँत भींचकर, कमर कसकर, छाती में प्राण भरकर जोर लगाओ और मन की दासता को कुचल डालो, बेड़ियाँ तोड़ फेंको । सदैव के लिए इसके शिकंजे में से निकलकर इसके स्वामी बन जाओ ।
मन पर विजय प्राप्त करनेवाला पुरुष ही इस विश्व में बुद्धिमान् और् भाग्यवान है । वही सच्चा पुरुष है । जिसमें मन का कान पकड़ने का साहस नहीं, जो प्रयत्न तक नहीं करता वह मनुष्य कहलाने के योग्य ही नहीं । वह साधारण गधा नहीं अपितु मकरणी गधा है ।
वास्तव में तो मन के लिए उसकी अपनी सत्ता ही नहीं है । आपने ही इसे उपजाया है । यह आपका बालक है । आपने इसे लाड़ लड़ा-लड़ाकर उन्मत बना दिया है । बालक पर विवेकपूर्ण अंकुश हो तभी बालक सुधरते हैं । छोटे पेड़ की रक्षार्थ काँटों की बाड़ चाहिए । इसी प्रकार मन को भी खराब संगत से बचाने के लिए आपके द्वारा चौकीरुपी बाड़ होनी चाहिए ।
हाथ-से-हाथ मसलकर, दाँत-से-दाँत भींचकर, कमर कसकर, छाती में प्राण भरकर जोर लगाओ और मन की दासता को कुचल डालो, बेड़ियाँ तोड़ फेंको । सदैव के लिए इसके शिकंजे में से निकलकर इसके स्वामी बन जाओ ।
मन पर विजय प्राप्त करनेवाला पुरुष ही इस विश्व में बुद्धिमान् और् भाग्यवान है । वही सच्चा पुरुष है । जिसमें मन का कान पकड़ने का साहस नहीं, जो प्रयत्न तक नहीं करता वह मनुष्य कहलाने के योग्य ही नहीं । वह साधारण गधा नहीं अपितु मकरणी गधा है ।
वास्तव में तो मन के लिए उसकी अपनी सत्ता ही नहीं है । आपने ही इसे उपजाया है । यह आपका बालक है । आपने इसे लाड़ लड़ा-लड़ाकर उन्मत बना दिया है । बालक पर विवेकपूर्ण अंकुश हो तभी बालक सुधरते हैं । छोटे पेड़ की रक्षार्थ काँटों की बाड़ चाहिए । इसी प्रकार मन को भी खराब संगत से बचाने के लिए आपके द्वारा चौकीरुपी बाड़ होनी चाहिए ।
शब्दों के बाण
आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
शब्दों के बाण किसी को भी भीतर तक लहूलुहान कर देते हैं। शब्दों की ताकत से हममें से हर कोई वाकिफ है। शब्द हमारे संबंधों को निर्धारित करते हैं।
बोले गए शब्दों के घाव तलवार से भी गंभीर होते हैं। जीवन की जटिल राहों में शब्द धूप-छाँव दोनों का काम करते हैं। इसलिए सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल करके हम अपनी ही नहीं, दूसरों की भी राहों को आसान बना सकते हैं। अक्सर लोग अपनी स्पष्टता और साफगोई को अपने व्यक्तित्व की एक बड़ी खासियत मानते हैं।
यह अच्छी बात है। लेकिन सीधे व सपाट शब्दों में अगर किसी को उसकी गलती बताई जाए तो वह गलती करने वाले आदमी को बदला लेने के लिए उकसाती है। ऐसे में ऐसी परिस्थितियों से निपटने का एक तरीका है कि उसे उसकी कुछ खासियतों के साथ गलती को इस ढंग से बताएँ कि उसे वह गलती अपमान की तरह न लगे। तो बस मौके को समझें और उस हिसाब से शब्दों का प्रयोग करें।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
शब्दों के बाण किसी को भी भीतर तक लहूलुहान कर देते हैं। शब्दों की ताकत से हममें से हर कोई वाकिफ है। शब्द हमारे संबंधों को निर्धारित करते हैं।
बोले गए शब्दों के घाव तलवार से भी गंभीर होते हैं। जीवन की जटिल राहों में शब्द धूप-छाँव दोनों का काम करते हैं। इसलिए सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल करके हम अपनी ही नहीं, दूसरों की भी राहों को आसान बना सकते हैं। अक्सर लोग अपनी स्पष्टता और साफगोई को अपने व्यक्तित्व की एक बड़ी खासियत मानते हैं।
यह अच्छी बात है। लेकिन सीधे व सपाट शब्दों में अगर किसी को उसकी गलती बताई जाए तो वह गलती करने वाले आदमी को बदला लेने के लिए उकसाती है। ऐसे में ऐसी परिस्थितियों से निपटने का एक तरीका है कि उसे उसकी कुछ खासियतों के साथ गलती को इस ढंग से बताएँ कि उसे वह गलती अपमान की तरह न लगे। तो बस मौके को समझें और उस हिसाब से शब्दों का प्रयोग करें।
चित्त की प्रसन्नता
आत्म-साक्षात्कारी सदगुरु के सिवाय अन्य किसी के ऊपर अति विश्वास न करो एवं अति सन्देह भी न करो।
अपने से छोटे लोगों से मिलो तब करुणा रखो। अपने से उत्तम व्यक्तियों से मिलो तब हृदय में श्रद्धा, भक्ति एवं विनय रखो। अपने समकक्ष लोगों से व्यवहार करने का प्रसंग आने पर हृदय में भगवान श्रीराम की तरह प्रेम रखो। अति उद्दण्ड लोग तुम्हारे संपर्क में आकर बदल न पायें तो ऐसे लोगों से थोड़े दूर रहकर अपना समय बचाओ। नौकरों को एवं आश्रित जनों को स्नेह दो। साथ ही साथ उन पर निगरानी रखो।
जो तुम्हारे मुख्य कार्यकर्ता हों, तुम्हारे धंधे-रोजगार के रहस्य जानते हों, तुम्हारी गुप्त बातें जानते हों उनके थोड़े बहुत नखरे भी सावधानीपूर्वक सहन करो।
अति भोलभाले भी मत बनो और अति चतुर भी मत बनो। अति भोलेभाले बनोगे तो लोग तुम्हें मूर्ख जानकर धोखा देंगे। अति चतुर बनोगे तो संसार का आकर्षण बढ़ेगा।
लालची, मूर्ख और झगड़ालू लोगों के सम्पर्क में नहीं आना। त्यागी, तपस्वी और परहित परायण लोगों की संगति नहीं छोड़ना।
चित्त की मलिनता चित्त का दोष है। चित्त की प्रसन्नता सदगुण है। अपने चित्त को सदा प्रसन्न रखो। राग-द्वेष के पोषक नहीं किन्तु राग-द्वेष के संहारक बनो।
कार्य सिद्ध होने पर, सफलता मिलने पर गर्व नहीं करना। कार्य में विफल होने पर विषाद के गर्त्त में नहीं गिरना।
अपने से छोटे लोगों से मिलो तब करुणा रखो। अपने से उत्तम व्यक्तियों से मिलो तब हृदय में श्रद्धा, भक्ति एवं विनय रखो। अपने समकक्ष लोगों से व्यवहार करने का प्रसंग आने पर हृदय में भगवान श्रीराम की तरह प्रेम रखो। अति उद्दण्ड लोग तुम्हारे संपर्क में आकर बदल न पायें तो ऐसे लोगों से थोड़े दूर रहकर अपना समय बचाओ। नौकरों को एवं आश्रित जनों को स्नेह दो। साथ ही साथ उन पर निगरानी रखो।
जो तुम्हारे मुख्य कार्यकर्ता हों, तुम्हारे धंधे-रोजगार के रहस्य जानते हों, तुम्हारी गुप्त बातें जानते हों उनके थोड़े बहुत नखरे भी सावधानीपूर्वक सहन करो।
अति भोलभाले भी मत बनो और अति चतुर भी मत बनो। अति भोलेभाले बनोगे तो लोग तुम्हें मूर्ख जानकर धोखा देंगे। अति चतुर बनोगे तो संसार का आकर्षण बढ़ेगा।
लालची, मूर्ख और झगड़ालू लोगों के सम्पर्क में नहीं आना। त्यागी, तपस्वी और परहित परायण लोगों की संगति नहीं छोड़ना।
चित्त की मलिनता चित्त का दोष है। चित्त की प्रसन्नता सदगुण है। अपने चित्त को सदा प्रसन्न रखो। राग-द्वेष के पोषक नहीं किन्तु राग-द्वेष के संहारक बनो।
कार्य सिद्ध होने पर, सफलता मिलने पर गर्व नहीं करना। कार्य में विफल होने पर विषाद के गर्त्त में नहीं गिरना।
DIPAWALI ME YAH BATE JARUR KARE
Param Pujya SadGurudev dvara gat varshon mein Diwali ke samay bataai gayee kuch baatein aapke saamne rakhney ka prayaas kar raha hoon...
1. Diwali aaye to Chaaval ka aata aur Haldi milaakar svastik banaa lena ghar ke (mukhya) dvar par. Is se Grah dosh door hoga aur Lakshmi sthir hogi. (Baraut Satsang 20th Sep'10)
2. Deepavali ke din laung (clove) aur ilaaichi (cardamom) ko jalaakar raakh kar dein; us se phir Gurudev (ki photo) ko tilak karein; Lakshmi-praapti mein madad milti hai, barkat hoti hai...
3. Kartik Maas mein yeh baatein karni chahiye (bahut laabh hota hai) -
a) Tulsiji ki mitti ka Tilak, b) Gangaji ka snaan, athva to prabhaat ka snaan (before sunrise), c) Brahmcharya ka paalan, chatoraapan na ho, d) Dharti par shayan...
4. Pooja ke sthaan par mor-pankh (peacock-feather) rakhney se Lakshmi-praapti mein madad milti hai...
5. Tulsi ke paudhey ke aagey shaam ko diya jalaaney se Lakshmi vridhhi mein madad milti hai; Gurudev ne yeh bhi kaha ki Lakshmiji ko kabhi Tulsiji nahin chadhaayee jaati, unko kamal (lotus) chadhaaya jaata hai...
6. Deepavali ki sandhya ko Tulsi ji ke nikat diya jalaayein, Lakshmiji ko prasann karne mein madad milti hai; Kartik maas mein Tulsiji ke aagey diya jalaana punya-daayi hai, aur praatah-kaal ke snaan ki bhi badi bhaari mahima hai...
7. Deepavali, janam-divas, aur nootan varsh ke din, prayatn-poorvak satsang sunna chahiye;
8. Deepavali ki raat ka jap hazaar guna fal-daayi hota hai; 4 maha-raatriyan hain - Diwali, Shivratri, Holi, Janmashtami - yeh sidhh raatriyaan hain, in raatriyon ka adhik se adhik jap kar ke laabh lena chahiye...
9. Deepavali ke baad aaney wali Dev-jagi Ekadashi ke din (17th Nov'10), sandhya ke samay kapoor (camphor) se aarti karne se aajeevan akaal-mrityu se raksha hoti hai; accident, aadi utpaaton se raksha hoti hai...
10. Deepavali ke next day, nootan varsh hota hai (New Year); us din, subah uthh kar thodi der chup baith jaayein; phir, apne dono haathon ko dekh kar yeh prarthna karein:
Karaagrey vasate Lakshmi, kar-madhyeye Saraswati, Kar-mooley tu Govindah, prabhaatey kar darshanam..
Arthaat - Mere haathon ke agrah bhaag mein Lakshmi ji ka vaas hai, mere haathon ke madhya bhaag mein Saraswati ji hain; mere haathon ke mool mein Govind hain, is bhaav se apne dono haathon ke darshan karta hoon...
Phir, jo nathuna chalta ho, wohi pair dharti par pehle rakhein; Daaya chalta ho, to 3 kadam aagey badhaayein, right pair se hi; baaya chalta ho, to 4 kadam aagey badaayein, left pair se hi;
11. Nootan varsh ka din jo vyakti harsh aur anand se bitaata hai, uska poora varsh harsh aur anand se jaata hai; (isliye hum sabhi saadhak 7th Nov'10 ko is baat ki sambhaal lein, ki yeh din harsh aur ullaas ke saath vyateet karein, Gurudev ka Satsang sun-ney, aur thoda jap jaada karne ka prayaas karein)...
1. Diwali aaye to Chaaval ka aata aur Haldi milaakar svastik banaa lena ghar ke (mukhya) dvar par. Is se Grah dosh door hoga aur Lakshmi sthir hogi. (Baraut Satsang 20th Sep'10)
2. Deepavali ke din laung (clove) aur ilaaichi (cardamom) ko jalaakar raakh kar dein; us se phir Gurudev (ki photo) ko tilak karein; Lakshmi-praapti mein madad milti hai, barkat hoti hai...
3. Kartik Maas mein yeh baatein karni chahiye (bahut laabh hota hai) -
a) Tulsiji ki mitti ka Tilak, b) Gangaji ka snaan, athva to prabhaat ka snaan (before sunrise), c) Brahmcharya ka paalan, chatoraapan na ho, d) Dharti par shayan...
4. Pooja ke sthaan par mor-pankh (peacock-feather) rakhney se Lakshmi-praapti mein madad milti hai...
5. Tulsi ke paudhey ke aagey shaam ko diya jalaaney se Lakshmi vridhhi mein madad milti hai; Gurudev ne yeh bhi kaha ki Lakshmiji ko kabhi Tulsiji nahin chadhaayee jaati, unko kamal (lotus) chadhaaya jaata hai...
6. Deepavali ki sandhya ko Tulsi ji ke nikat diya jalaayein, Lakshmiji ko prasann karne mein madad milti hai; Kartik maas mein Tulsiji ke aagey diya jalaana punya-daayi hai, aur praatah-kaal ke snaan ki bhi badi bhaari mahima hai...
7. Deepavali, janam-divas, aur nootan varsh ke din, prayatn-poorvak satsang sunna chahiye;
8. Deepavali ki raat ka jap hazaar guna fal-daayi hota hai; 4 maha-raatriyan hain - Diwali, Shivratri, Holi, Janmashtami - yeh sidhh raatriyaan hain, in raatriyon ka adhik se adhik jap kar ke laabh lena chahiye...
9. Deepavali ke baad aaney wali Dev-jagi Ekadashi ke din (17th Nov'10), sandhya ke samay kapoor (camphor) se aarti karne se aajeevan akaal-mrityu se raksha hoti hai; accident, aadi utpaaton se raksha hoti hai...
10. Deepavali ke next day, nootan varsh hota hai (New Year); us din, subah uthh kar thodi der chup baith jaayein; phir, apne dono haathon ko dekh kar yeh prarthna karein:
Karaagrey vasate Lakshmi, kar-madhyeye Saraswati, Kar-mooley tu Govindah, prabhaatey kar darshanam..
Arthaat - Mere haathon ke agrah bhaag mein Lakshmi ji ka vaas hai, mere haathon ke madhya bhaag mein Saraswati ji hain; mere haathon ke mool mein Govind hain, is bhaav se apne dono haathon ke darshan karta hoon...
Phir, jo nathuna chalta ho, wohi pair dharti par pehle rakhein; Daaya chalta ho, to 3 kadam aagey badhaayein, right pair se hi; baaya chalta ho, to 4 kadam aagey badaayein, left pair se hi;
11. Nootan varsh ka din jo vyakti harsh aur anand se bitaata hai, uska poora varsh harsh aur anand se jaata hai; (isliye hum sabhi saadhak 7th Nov'10 ko is baat ki sambhaal lein, ki yeh din harsh aur ullaas ke saath vyateet karein, Gurudev ka Satsang sun-ney, aur thoda jap jaada karne ka prayaas karein)...
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