प्रेम के बल पर ही मनुष्य सुखी हो सकता है। बन्दूक पर हाथ रखकर अगर वह निश्चिन्त रहना चाहे तो वह मूर्ख है। जहाँ प्रेम है वहाँ ज्ञान की आवश्यकता है। सेवा में ज्ञान की आवश्यकता है और ज्ञान में प्रेम की आवश्यकत है। विज्ञान को तो आत्मज्ञान एवं प्रेम, दोनों की आवश्यकता है।
मानव बन मानव का कल्याण करो। बम बनाने में अरबों रुपये बरबाद हो रहे हैं। ....और वे ही बम मनुष्य जाति के विनाश में लगाये जाएँ !नेताओं और राजाओं की अपेक्षा किसी आत्मज्ञानी गुरु के हाथ में बागडोर आ जाय तो विश्व नन्दनवन बन जाये।
रोटी बनाते हो तो बिलकुल तत्परता से बनाओ। खाने वालों की तन्दरुस्ती और रूचि बनी रहे ऐसा भोजन बनाओ। कपड़े ऐसे धोओ कि साबुन अधिक खर्च न हो, कपड़े जल्दी फटे नहीं और कपड़ों में चमक भी आ जाये। झाड़ू ऐसा लगाओ कि मानो पूजा कर रहे हो। कहीं कचरा न रह जाये। बोलो ऐसा कि जैसा श्रीरामजी बोलते थे। वाणी सारगर्भित, मधुर, विनययुक्त, दूसरों को मान देनेवाली और अपने को अमानी रखने वाली हो। ऐसे लोगों का सब आदर करते हैं।
अपने से छोटे लोगों के साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करो। दीन-हीन, गरीब और भूखे को अन्न देने का अवसर मिल जाय तो चूको मत। स्वयं भूखे रहकर भी कोई सचमुच भूखा हो तो उसे खिला दो तो आपको भूखा रहने में भी अनूठा मजा आयेगा। उस भोजन खाने वाले की तो चार-छः घण्टों की भूख मिटेगी लेकिन आपकी अन्तरात्मा की तृप्ति से आपकी युगों-युगों की और अनेक जन्मों की भूख मिट जायेगी।
अपने दुःख में रोने वाले ! मुस्कुराना सीख ले।
दूसरों के दर्द में आँसू बहाना सीख ले।
जो खिलाने में मजा है आप खाने में नहीं।
जिन्दगी में तू किसी के काम आना सीख ले।।
Tuesday, November 2, 2010
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