सच्चे और निष्कपट भाव से प्रभु की आराधना करना भक्ति है। उस समय प्रभु के प्रति प्रबल प्रेम का भाव आने लगता है। भक्ति का संबंध दिल से है।
योग साधना मन और बुद्धि को तेज व निर्मल बनाने और दिल को खोलने की
प्रक्रिया है। कर्मयोग हमारे शारीरिक और मानसिक कर्मों की सफाई के लिए है,
ज्ञानयोग से बुद्धि तेज होती है और भक्तियोग भाव को शुद्ध करने की
प्रक्रिया है।
अगर दिल नहीं खुला तो ज्ञानयोग भी केवल शब्द मात्र रह जाता है, जो कभी अहंकार को शुद्ध नहीं कर सकेगा। लेकिन जब ज्ञानयोग जीवन में उतरने लगता है, तब साधक भक्त कहलाता है। गुरु, शिष्य के दिल को ही खोलने की कोशिश करता है, जिससे शक्ति का प्रवाह ऊपर की तरफ होने लगे और साधक चेतना की उच्च अवस्था में पहुंच जाए।
No comments:
Post a Comment