हर जीव का वास्तविक घर तो भगवान का धाम ही है। यह धरातल तो रैन - बसेरा की तरह है जहां पर कुछ समय के लिये जीव ठहरता है। जो अपना नहीं , उसको हम अपना बताते हैं। यह घर , यह परिवार और यह धन इत्यादि सब यहीं रह जाना है। अगर यह हमारा होता तो हमारे साथ ही चले जाना चाहिए था। वास्तव में हम भ्रम में जी कर इनकी पालना कर रहे हैं , जबकि हमें
पालना करनी चाहिये अपने वास्तविक ध्येय की। क्या है वास्तविक ध्येय ? यह ध्येय है भगवान की भक्ति।
धन कमाना , परिवार बनाना और उसकी देखभाल करना अनुचित नहीं है , परंतु उसमें बहुत अधिक आसक्त हो जाना ठीक नहीं है। अपनी असली पहचान को समझें। अपने वास्तविक संबंधी यानि भगवान से अपने संबंध को मजबूत करें।
धन कमाना , परिवार बनाना और उसकी देखभाल करना अनुचित नहीं है , परंतु उसमें बहुत अधिक आसक्त हो जाना ठीक नहीं है। अपनी असली पहचान को समझें। अपने वास्तविक संबंधी यानि भगवान से अपने संबंध को मजबूत करें।
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