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Tuesday, April 9, 2013

श्रद्धा

जिसको आपने देखा नहीं उसमें विश्वास करना होता है। विश्वास हो तो बिल्कुल अन्धा हो और विचार करो तो बिल्कुल निष्ठुर, तर्कयुक्त, तीक्षण, तलवार की धार जैसा। उसमें फिर कोई पक्षपात नहीं।
श्रद्धा करो तो अन्धी करो । काम करो तो मशीन होकर करो, बिल्कुल व्यवस्थित, क्षति रहित। विश्वास करो तो बस.... धन्ना जाट की नाँईं। आत्मविचार करो तो बिल्कुल तटस्थ।


लोग श्रद्धा करने की जगह पर विचार करते हैं, तर्क लड़ाते हैं और आत्म विचार की जगह पर श्रद्धा करते हैं। अपनी 'मैं' के विषय में विचार चाहिए और भगवान को मानने में विश्वास चाहिए। वस्तु का उपयोग करने में तटस्थता चाहिए। ये तीन बाते आ जाय तो कल्याण हो जाय।



1 comment:

Unknown said...

Blatkari bapu asharam