जैसे स्नेहमयी जननीका वक्ष:स्थल शिशुके लिये सदा ही
खुला रहता है,वैसे ही भगवान् तुम्हें बड़े प्यारसे अपने हृदयसे चिपटानेको तैयार
मिलेंगे।इतनेपर भी जो जीव उनकी ओरसे मुख मोड़े रहनेमें ही अपना गौरव मानता है;उसके
समान अभागा और कोई नहीं है।सारे पाप-ताप सदा उसके सामने मुँह बाये खड़े रहते हैं और
वह अपने जीवनमें किसी भी स्थितिमें क...भी भी सच्ची स...ुख-शान्तिका साक्
भयंकर से भयंकर परिस्थिति आ जाय,तब भी कह दो-"आओ मेरे प्यारे!आओ,आओ,आओ।तुम कोई और नहीं हो।मैं तुम्हें जानता हूँ।तुमने मेरे लिये आवश्यक समझा होगा कि मैं दु:ख के वेश में आऊँ,इसलिये तुम दु:ख के वेश में आये हो।स्वागतम्!वैलकम्! आओ आओ चले आओ!" आप देखेंगे कि वह प्रतिकूलता आपके लिये इतनी उपयोगी सिद्ध होगी कि जिस पर अनेकों अनुकूलत...ायें निछावर की जा सकती है।
Saturday, June 12, 2010
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