प्रेमी के हृदय में जब प्रीति की वृद्धि होती है तो उसकी प्रत्येक प्रवृति में प्रीति आ जाती है।प्रीति कोई ऐसी चीज नहीं है कि आप सब काम-धन्धा छोड़ देंगे,तब प्रेम करेंगे।
हे नाथ! आप तो दीनबन्धु हैं! करुणासागर हैं! फिर क्या आप हमारे लिये ही कठोर बन जायँगे?आप तो अकारण ही प्रेमकरनेवाले हैं! फिर क्या आप हमारे लिये ही कारण खोजेंगे? हे नाथ! विशेष न तरसाईये! अपनी विरद की तरफ देखकर ही हमें प्रेम-प्रदान कीजिये।इस जीवन को रसमय बना दीजिये।इस हृदय में तो तनिक भी प्रेम नहीं है!
Wednesday, June 30, 2010
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