जो लोग सिंध में रहते थे और विदेशों में जाकर कमाते थे उनको सिंधवर्की कहा जाता था।
सिंधवर्की खूबचन्द अपनी पत्नी, माँ बाप को छोड़कर विदेश में कमाने गया। धन्धे-रोजगार में खूब बरकत रही। साल-दो-साल के अंतर पर घर आता-जाता रहा। इसी बीच उसको एक बेटा हो गया। फिर वह कमाने के लिए विदेश चला गया और इधर बेटे को न्यमोनिया हुआ और वह चल बसा। पत्नी ने सोचा किः "पति को खबर देने से बेटा लौटेगा तो नहीं और पति वहाँ बेचैन हो जाएगा।" पत्नी ने खूबचन्द को बेटे के अवसान की खबर नहीं दी।
कुछ समय बाद खूबचन्द जब घर लौटने को हुआ तब उसकी पत्नी ने एक युक्ति रची। अपनी पड़ोसन के गहने ले आयी और पहन लिये। खूब सज-धजकर पति का स्वागत करने के लिए तैयार हो गयी। पति घर आया। पत्नी ने स्वागत किया। पति ने पूछाः "बेटा किशोर कहाँ है ?"
"होगा कहीं अड़ोस-पड़ोस में। खेलता होगा। आप स्नानादि कीजिए, आराम कीजिए।"
खूबचन्द ने स्नान भोजन किया। फिर आराम करने लगा तो पत्नी चरणसेवा करने आ गई। बात-बात में कहने लगीः
"देखिये, ये गहने कितने सुन्दर हैं ! पड़ोसन के हैं और वह वापस माँग रही है मगर मैं उसे वापस देना नहीं चाहती।"
पति बोलाः "पगली ! किसी की अमानत है, उसे वापस देने में विलंब कैसा ? ऐसा क्यों करती है ? तेरा स्वभाव क्यों बदल गया ?"
"जा दे आ। पहले वह काम कर, जा गहने दे आ।"
"नहीं नहीं, ये तो मेरे हैं।" पत्नी नट गई।
"तू बोलती है कि पड़ोसन के हैं ? मैंने तुझे बनवाकर नहीं दिये तो ये गहने तेरे कैसे हो गये ? तुम्हारे नहीं है फिर उनमें अपनापन क्यों करती है ? ऐसी क्या मूर्खता ? जा, गहने दे आ।"
लम्बी-चौड़ी बातचीत के बाद वह सचमुच में गहने पड़ोसन को दे आई, फिर आकर पति से बोलीः
"जैसे, वे गहने पराये थे और मैं अपना मान रही थी तो बेवकूफ थी, ऐसे ही वह पाँच भूतों का पुतला था न, हमारा किशोर..... वह पाँच भूतों का था और पाँच भूतों में वापस चला गया। अब मुझे दुःख होता है तो मैं बेवकूफ हूँ न ?"
पति बोलाः "अच्छा ! तूने चिट्ठी क्यों नहीं लिखी ?"
"चिट्ठी इसलिए नहीं लिखी कि आप शायद वहाँ दुःखी हों। ऐसी बेवकूफी की चिट्ठी क्या लिखना ?"
पति ने कहाः "ठीक है, बात तो सही है। पाँच भूतों के पुतले बनते हैं और बिगड़ते है। किशोर की आत्मा और हमारी आत्मा एक है। आत्मा की कभी मौत नहीं होती और शरीर कभी शाश्वत टिकते नहीं। कोई बात नहीं.....।"
वह महिला निर्दय नहीं थी, समझदार थी।
अनुचित प्रसंग में, मोह के प्रसंग में, अशांति के प्रसंग में अगर तुम कृत उपासक हो, अगर तुम्हारी कोई समझ है तो ऐसे दुःख या अशांति के प्रसंग भी तुम्हें अशांति नहीं दे सकेंगे।
सिंधवर्की खूबचन्द अपनी पत्नी, माँ बाप को छोड़कर विदेश में कमाने गया। धन्धे-रोजगार में खूब बरकत रही। साल-दो-साल के अंतर पर घर आता-जाता रहा। इसी बीच उसको एक बेटा हो गया। फिर वह कमाने के लिए विदेश चला गया और इधर बेटे को न्यमोनिया हुआ और वह चल बसा। पत्नी ने सोचा किः "पति को खबर देने से बेटा लौटेगा तो नहीं और पति वहाँ बेचैन हो जाएगा।" पत्नी ने खूबचन्द को बेटे के अवसान की खबर नहीं दी।
कुछ समय बाद खूबचन्द जब घर लौटने को हुआ तब उसकी पत्नी ने एक युक्ति रची। अपनी पड़ोसन के गहने ले आयी और पहन लिये। खूब सज-धजकर पति का स्वागत करने के लिए तैयार हो गयी। पति घर आया। पत्नी ने स्वागत किया। पति ने पूछाः "बेटा किशोर कहाँ है ?"
"होगा कहीं अड़ोस-पड़ोस में। खेलता होगा। आप स्नानादि कीजिए, आराम कीजिए।"
खूबचन्द ने स्नान भोजन किया। फिर आराम करने लगा तो पत्नी चरणसेवा करने आ गई। बात-बात में कहने लगीः
"देखिये, ये गहने कितने सुन्दर हैं ! पड़ोसन के हैं और वह वापस माँग रही है मगर मैं उसे वापस देना नहीं चाहती।"
पति बोलाः "पगली ! किसी की अमानत है, उसे वापस देने में विलंब कैसा ? ऐसा क्यों करती है ? तेरा स्वभाव क्यों बदल गया ?"
"जा दे आ। पहले वह काम कर, जा गहने दे आ।"
"नहीं नहीं, ये तो मेरे हैं।" पत्नी नट गई।
"तू बोलती है कि पड़ोसन के हैं ? मैंने तुझे बनवाकर नहीं दिये तो ये गहने तेरे कैसे हो गये ? तुम्हारे नहीं है फिर उनमें अपनापन क्यों करती है ? ऐसी क्या मूर्खता ? जा, गहने दे आ।"
लम्बी-चौड़ी बातचीत के बाद वह सचमुच में गहने पड़ोसन को दे आई, फिर आकर पति से बोलीः
"जैसे, वे गहने पराये थे और मैं अपना मान रही थी तो बेवकूफ थी, ऐसे ही वह पाँच भूतों का पुतला था न, हमारा किशोर..... वह पाँच भूतों का था और पाँच भूतों में वापस चला गया। अब मुझे दुःख होता है तो मैं बेवकूफ हूँ न ?"
पति बोलाः "अच्छा ! तूने चिट्ठी क्यों नहीं लिखी ?"
"चिट्ठी इसलिए नहीं लिखी कि आप शायद वहाँ दुःखी हों। ऐसी बेवकूफी की चिट्ठी क्या लिखना ?"
पति ने कहाः "ठीक है, बात तो सही है। पाँच भूतों के पुतले बनते हैं और बिगड़ते है। किशोर की आत्मा और हमारी आत्मा एक है। आत्मा की कभी मौत नहीं होती और शरीर कभी शाश्वत टिकते नहीं। कोई बात नहीं.....।"
वह महिला निर्दय नहीं थी, समझदार थी।
अनुचित प्रसंग में, मोह के प्रसंग में, अशांति के प्रसंग में अगर तुम कृत उपासक हो, अगर तुम्हारी कोई समझ है तो ऐसे दुःख या अशांति के प्रसंग भी तुम्हें अशांति नहीं दे सकेंगे।
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