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Sunday, February 6, 2011

विश्रांति

अपने बच्चे-बच्चियों को अधिक रोक-टोक कर उनको मानसिक दुश्मन मत बनाओ । चौदह साल से ऊपर के बच्चे-बच्चियों से मित्रवत व्यवहार करो, नहीं तो भीतर से वे तुम्हारे शत्रु हो जाऐंगें तो तुम्हारी अच्छी बात भी उनके गले नहीं उतरेंगी । उनमें हजार-हजार कमियां हो सकती हैं लेकिन कोई एक सद्गुण होगा बच्चे में-बच्ची में, आप उसके सद्गुणों को प्रोत्साहित करें और जो आप सद्गुण डालना चाहते उस सद्गुण की थोड़ी महिमा करें ।

जो दूसरे सुख देंगें; इस भाव से काम करते हैं उसके काम बंधनकारी हो जाते हैं, दुःख देने वाले हो जाते हैं । अपना कर्तव्य निभाने के लिए बेटे को, बेटी को, पत्नि को,पति को अपनी सेवा करके संतुष्ट कर दो । महान परमात्मा से ही जुड़े रहने में तेरी महानता है । परमेश्वर के नाते आप मिलो । परमेश्वर के नाते पति की, पत्नि की, मित्रों की, साधक की, संत की, गृहस्थ की सेवा कर लो बस; तो आपको विश्रांति मिलेगी, विश्रांति आपकी माँग है । परमात्मा में विश्रांति से आपका स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन, स्वभाविक हो जाएगा ।

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