तुम्हारी भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं है
बल्कि तुम्हारे कर्म, प्रवृत्ति और व्यवहार में अभिव्यक्त होती है। वह केवल
एक भावना नहीं है, वह चेतना का एक उत्कृष्ट और सार्वभौमिक गुण है। ईश्वर
को प्रेम करने वाले, उसके प्रति निष्ठा रखने वाले इस संपूर्ण विश्व को भी
प्रेम करते हैं, क्योंकि यह जगत ईश्वर से ही व्याप्त है। जीवात्मा,
विश्वात्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। यही अद्वैत ज्ञान है।
Thursday, January 24, 2013
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