मेरी हो सो जल जाय, तेरी हो सो रह जाय। हमारी जो
अहंता, ममता और वासना है वह जल जाए। गुरुजी! आपकी जो करुणा और ज्ञानप्रसाद
है वही रह जाए। तत्परता से सेवा करते हैं तो आदमी की वासनाएं नियंत्रित हो
जाती हैं और ईश्वरप्राप्ति की भूख लगती है। प्रमाणभूत है कि जगत नष्ट हो
रहा है। संसार का कितना भी कुछ मिल जाए लेकिन परमात्म-पद को पाए बिना इस
जीवात्मा का जन्म-मरण का दुःख जाएगा नहीं।
Wednesday, January 30, 2013
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