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Thursday, January 31, 2013

एक मछली, अपनी साथी मछलियों से पूछा करती थी, मैं हमेशा सागर का नाम सुनती हूं। यह सागर है क्या? और कहां है? मैं उसे कहां तलाशूं? मछली सागर में ही रहती थी, वहीं खाती-पीती और सोती थी। वहीं उसका जन्म हुआ था, और मृत्यु भी सागर में ही निश्चित थी। पर सागर का उसे पता नहीं था, क्योंकि उसकी विशालता को न वो देख सकती थी और न पहचान सकती थी। छोटी सी थी, तो दूर तक तैर कर भी उसके दायरे का अंदाजा नहीं लगा सकती थी। कुछ उसी मछली जैसा हाल हमारा भी है... ऐसे ही विश्व रूप ब्रह्म में हम हैं और वह हम में है, फिर भी उसे तलाशते रहते हैं।

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