माँ
कमर झुक गई
माँ बूढ़ी हो गई
प्यार वैसा ही है
याद है
कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबककर
माँ ने पोंछे आँसू
खुरदरी हथेलियों से
कहानी सुनाते-सुनाते
चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर
सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताज़ा मक्*खन
रात में सुनाई
सोने के लिए लोरियाँ
इस उम्र में भी
थकी नहीं
माँ तो माँ है।
Sunday, May 9, 2010
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