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Sunday, May 2, 2010

त्याग

जीवन में त्याग का सामर्थ्य होना चाहिए। सब कुछ त्यागने की शक्ति होनी चाहिए। जिनके पास त्यागने की शक्ति होती है वे ही वास्तव में भोग सकते हैं। जिसके पास त्यागने की शक्ति नहीं है वह भोग भी नहीं सकता। त्याग का सामर्थ्य होना चाहिए। यश मिल गया तो यश के त्याग का सामर्थ्य होना चाहिए, धन के त्याग का सामर्थ्य होना चाहिए, सत्ता के त्याग का सामर्थ्य होना चाहिए।


सत्ता भोगने की इच्छा है और सत्ता नहीं मिल रही है तो आदमी कितना दुःखी होता है ! सत्ता मिल भी गई दो-पाँच साल के लिए और फिर चली गई। कुर्सी तो दो-पाँच साल की और कराहना जिन्दगी भर। यही है बाहरी सुख का हाल। विकारी सुख तो पाँच मिनट का और झंझट जीवन भर की।

सत्ता मिली तो सत्ता छोड़ने का सामर्थ्य होना चाहिए। दृश्य दिखा तो बार-बार दृश्य देखने की आसक्ति को छोड़ने का सामर्थ्य होना चाहिए। धन मिला तो धन का सदुपयोग करने के लिए धन छोड़ने का सामर्थ्य होना चाहिए। यहाँ तक कि अपना शरीर छोड़ने का सामर्थ्य होना चाहिए। जब मृत्यु आवे तब शरीर को भीतर से पकड़कर बैठे न रहें। चलो, मृत्यु आयी तो आयी, हम तो वही हैं चिदघन चैतन्य चिदाकाश स्वरूप.... सोऽहं...सोऽहम्। ऐसे त्यागी को मरने का भी मजा आता है और जीने का भी मजा आता है।

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