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Monday, May 31, 2010

 भगवान्‌ का भक्त होने का तात्पर्य है-’मैं भगवान्‌ का ही हूँ’ इस प्रकार अपनी अहंताको बदल देना।भगवान्‌ में मन लगाने का तात्पर्य है-भगवान्‌ को अपना मानना।भगवान्‌ का पूजन करने का तात्पर्य-सब कार्य पूजाभावसे करना।भगवान्‌ को नमस्कार करने का तात्पर्य है-अपने-आपको भगवान्‌ के समर्पित करना।


 जब तक 'तू' और 'तेरा' जिन्दे रहेंगे तब तक परमात्मा तेरे लिये मरा हुआ है। 'तू' और 'तेरा' जब मरेंगे तब परमात्मा तेरे जीवन में सम्पूर्ण कलाओं के साथ जन्म लेंगे। यही आखिरी मंजिल है। विश्व भर में भटकने के बाद विश्रांति के लिए अपने घर ही लौटना पड़ता है। उसी प्रकार जीवन की सब भटकान के बाद इसी सत्य में जागना पड़ेगा, तभी निर्मल, शाश्वत सुख उपलब्ध होगा।

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