sadguru tumhare gyan ne jina sikha diya,
hamko tumhare pyar ne insa banadiya.
rahte hai jalve aapke nazro mai hargadhi,
masti ka jam aapne aisa piladiya.
sadguru tumhare gyan ne jina sikha diya,
hamko tumhare pyar ne insa banadiya.
bhula huvatha rasta bhatka huvatha mai,
rehma teri ne mujko kabil bana diya.
sadguru tumhare gyan ne jina sikha diya,
hamko tumhare pyar ne insa banadiya.jisne kiseko aajtak sajda nahi kiya,
vo sarbhi maine aapke dar pe jukadiya
jisdin se mujko aapne apna banaliya
dono jaha ko das ne sab se bhula diya
sadguru tumhare gyan ne jina sikha diya hamko tumhare pyar ne insa banadiya
Tuesday, April 6, 2010
गुरू
गुरू की मूर्ति ध्यान का मूल है। गुरू के चरणकमल पूजा का मूल है। गुरू का वचन मोक्ष का मूल है।
गुरू तीर्थस्थान हैं। गुरू अग्नि हैं। गुरू सूर्य हैं। गुरू समस्त जगत हैं। समस्त विश्व के तीर्थधाम गुरू के चरणकमलों में बस रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, इन्द्र आदि सब देव और सब पवित्र नदियाँ शाश्वत काल से गुरू की देह में स्थित हैं। केवल शिव ही गुरू हैं।
गुरू और इष्टदेव में कोई भेद नहीं है। जो साधना एवं योग के विभिन्न प्रकार सिखाते है वे शिक्षागुरू हैं। सबमें सर्वोच्च गुरू वे हैं जिनसे इष्टदेव का मंत्र श्रवण किया जाता है और सीखा जाता है। उनके द्वारा ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
अगर गुरू प्रसन्न हों तो भगवान प्रसन्न होते हैं। गुरू नाराज हों तो भगवान नाराज होते हैं। गुरू इष्टदेवता के पितामह हैं।
जो मन, वचन, कर्म से पवित्र हैं, इन्द्रियों पर जिनका संयम है, जिनको शास्त्रों का ज्ञान है, जो सत्यव्रती एवं प्रशांत हैं, जिनको ईश्वर-साक्षात्कार हुआ है वे गुरू हैं।
गुरू तीर्थस्थान हैं। गुरू अग्नि हैं। गुरू सूर्य हैं। गुरू समस्त जगत हैं। समस्त विश्व के तीर्थधाम गुरू के चरणकमलों में बस रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, इन्द्र आदि सब देव और सब पवित्र नदियाँ शाश्वत काल से गुरू की देह में स्थित हैं। केवल शिव ही गुरू हैं।
गुरू और इष्टदेव में कोई भेद नहीं है। जो साधना एवं योग के विभिन्न प्रकार सिखाते है वे शिक्षागुरू हैं। सबमें सर्वोच्च गुरू वे हैं जिनसे इष्टदेव का मंत्र श्रवण किया जाता है और सीखा जाता है। उनके द्वारा ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
अगर गुरू प्रसन्न हों तो भगवान प्रसन्न होते हैं। गुरू नाराज हों तो भगवान नाराज होते हैं। गुरू इष्टदेवता के पितामह हैं।
जो मन, वचन, कर्म से पवित्र हैं, इन्द्रियों पर जिनका संयम है, जिनको शास्त्रों का ज्ञान है, जो सत्यव्रती एवं प्रशांत हैं, जिनको ईश्वर-साक्षात्कार हुआ है वे गुरू हैं।
Sunday, April 4, 2010
जहाँ दिव्यता ही जीवन है सागर का गांभीर्य जहाँ
जो कर्मो की फुलवारी है नत-मस्तक है विश्व वहाँ ॥१॥
विपदाएँ कितनी आयी है कितने ही आघात सहे
किन्तु अचल जो खड़ा हुआ है वंदन शत-शत नरवर हे ॥२॥
जिसके मन में ध्येय देव का निशिदिन चिंतन वंदन है
देशभक्ति का प्रकश हँसता जग को पंथ दिखाता है ॥३॥
जिसका स्मित चैतन्य पुरुष है शब्द-शब्द नवदीप प्रखर
जिसकी कृति से भविष्य उज्ज्वल उसको जग का वंदन है ॥४
जो कर्मो की फुलवारी है नत-मस्तक है विश्व वहाँ ॥१॥
विपदाएँ कितनी आयी है कितने ही आघात सहे
किन्तु अचल जो खड़ा हुआ है वंदन शत-शत नरवर हे ॥२॥
जिसके मन में ध्येय देव का निशिदिन चिंतन वंदन है
देशभक्ति का प्रकश हँसता जग को पंथ दिखाता है ॥३॥
जिसका स्मित चैतन्य पुरुष है शब्द-शब्द नवदीप प्रखर
जिसकी कृति से भविष्य उज्ज्वल उसको जग का वंदन है ॥४
PUJYA GURUDEV AVATARAN DIN
Narayan ke roop me, krishna kaho ya Ram.
naye roop me aaye hain, Sadguru Asharam.
Hue Avatarit Guru Ji Hamare
ॐ : हुए अवतरित गुरूजी हमारे : ॐ हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे
गुरूजी हमारे , भक्तों के दुलारे हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे
देखो मेरे गुरुवर की शान निराली , सत्संग की भर -भर देते प्याली
किया भक्तों का उद्धार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
कैसा मंगल दिवस है आया , भक्तों ने बड़ी धूम से मनाया
कीर्तन की बहती बयार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
जन्म से पहले सौदागर आया , सुंदर सा एक झूला भी लाया
हुआ धरती पर अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
ज्ञान गगन के सूर्य हैं बापू , शील शांत माधुर्य हैं बापू
सोलह कला के अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च येन।
अर्थात जिस कुल में वे महापुरुष अवतरित होते है वह कुल पवित्र हो जाता है, जिस माता के गर्भ से उनका जन्म होता है वह भाग्यवती जननी कृतार्थ हो जाती है और जहाँ उनकी चरणरज पड़ती है वह वसुन्धरा भी पुण्यवती हो जाती है।
साधारण जीव का जन्म कर्मबन्धन से, वासना के वेग से होता है। भगवान या संत-महापुरुषों का जन्म ऐसे नहीं होता। वास्तव में तो उनका मनुष्य रूप में धरती पर प्रकट होना, जन्म लेना नहीं अपितु अवतरित होना कहलाता है।
भगवान या संत महापुरुष तो लोकमांगल्य के लिए, किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए अथवा लाखों-लाखों लोगों द्वारा करूण पुकार लगायी जाने पर अवतरित होते है अर्थात् हमारी सदभावनाओं को, हमारे ध्येय को, हमारी आवश्यकताओं को साकार रूप देने के लिए जो प्रकट हो जायें वे अवतार या भगवत्प्राप्त महापुरुष कहलाते हैं।
शरीर का जन्म होना और उसका जन्मदिन मनाना कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि उसके जन्म का उद्देश्य पूर्ण कर लेना यह बहुत बड़ी बात है। जिन्होंने इस उद्देश्य को पूर्ण कर लिया है, ऐसे परब्रह्म परमात्मा में जगे हुए महापुरुषों का अवतरण-दिवस हमें भी जीवन के इस ऊँचे लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है, इसलिए वह उत्सव मनाने का एक सुन्दर अवसर है और सबको मनाना चाहिए।
लोग बोलते हैं- "बापू जी ! आपको बधाई हो।"
"किस बात की बधाई ?"
"आपका जन्म दिवस है।"
यह सब हम नहीं चाहते क्योंकि हम जानते हैं कि जन्म तो शरीर का हुआ है, हमारा जन्म तो कभी होता ही नहीं।
जन्म दिवस पर हमें आपकी कोई भी चीज-वस्तु, रूपया-पैसा या बधाई नहीं चाहिए। हम तो केवल आपका मंगल चाहते हैं, कल्याण चाहते हैं। आपका मंगल किसमें है ?
आपको इस बात का अनुभव हो जाय कि संसार क्षणभंगुर है, परिस्थितियाँ आती जाती रहती हैं, शरीर जन्मते-मरते रहते हैं परंतु आत्मा तो अनादिकाल से अजर अमर है।
जन्मदिवस की बधाई हम नहीं लेते... फिर भी बधाई ले लेते हैं क्योंकि इसके निमित्त भी आप सत्संग में आ जाते हैं और स्वयं को शरीर से अलग चैतन्य, अमर आत्मा मानने का, सुनने का अवसर आपको मिल जाता है। इस बात की बधाई मैं आपको देता भी हूँ और लेता भी हूँ.....
वास्तव में संतों का अवतरण-दिवस मनाने का अर्थ पटाखे फोड़कर, मिठाई बाँटकर अपनी खुशी प्रकट कर देना मात्र नहीं है, अपितु उनके जीवन से प्रेरणा लेकर व उनके दिव्य गुणों को स्वीकार कर अपने जीवन में भी संतत्त्व प्रकट करना ही सच्चे अर्थों में उनका अवतरण-दिवस मनाना है।
naye roop me aaye hain, Sadguru Asharam.
Hue Avatarit Guru Ji Hamare
ॐ : हुए अवतरित गुरूजी हमारे : ॐ हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे
गुरूजी हमारे , भक्तों के दुलारे हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे
देखो मेरे गुरुवर की शान निराली , सत्संग की भर -भर देते प्याली
किया भक्तों का उद्धार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
कैसा मंगल दिवस है आया , भक्तों ने बड़ी धूम से मनाया
कीर्तन की बहती बयार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
जन्म से पहले सौदागर आया , सुंदर सा एक झूला भी लाया
हुआ धरती पर अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
ज्ञान गगन के सूर्य हैं बापू , शील शांत माधुर्य हैं बापू
सोलह कला के अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च येन।
अर्थात जिस कुल में वे महापुरुष अवतरित होते है वह कुल पवित्र हो जाता है, जिस माता के गर्भ से उनका जन्म होता है वह भाग्यवती जननी कृतार्थ हो जाती है और जहाँ उनकी चरणरज पड़ती है वह वसुन्धरा भी पुण्यवती हो जाती है।
साधारण जीव का जन्म कर्मबन्धन से, वासना के वेग से होता है। भगवान या संत-महापुरुषों का जन्म ऐसे नहीं होता। वास्तव में तो उनका मनुष्य रूप में धरती पर प्रकट होना, जन्म लेना नहीं अपितु अवतरित होना कहलाता है।
भगवान या संत महापुरुष तो लोकमांगल्य के लिए, किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए अथवा लाखों-लाखों लोगों द्वारा करूण पुकार लगायी जाने पर अवतरित होते है अर्थात् हमारी सदभावनाओं को, हमारे ध्येय को, हमारी आवश्यकताओं को साकार रूप देने के लिए जो प्रकट हो जायें वे अवतार या भगवत्प्राप्त महापुरुष कहलाते हैं।
शरीर का जन्म होना और उसका जन्मदिन मनाना कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि उसके जन्म का उद्देश्य पूर्ण कर लेना यह बहुत बड़ी बात है। जिन्होंने इस उद्देश्य को पूर्ण कर लिया है, ऐसे परब्रह्म परमात्मा में जगे हुए महापुरुषों का अवतरण-दिवस हमें भी जीवन के इस ऊँचे लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है, इसलिए वह उत्सव मनाने का एक सुन्दर अवसर है और सबको मनाना चाहिए।
लोग बोलते हैं- "बापू जी ! आपको बधाई हो।"
"किस बात की बधाई ?"
"आपका जन्म दिवस है।"
यह सब हम नहीं चाहते क्योंकि हम जानते हैं कि जन्म तो शरीर का हुआ है, हमारा जन्म तो कभी होता ही नहीं।
जन्म दिवस पर हमें आपकी कोई भी चीज-वस्तु, रूपया-पैसा या बधाई नहीं चाहिए। हम तो केवल आपका मंगल चाहते हैं, कल्याण चाहते हैं। आपका मंगल किसमें है ?
आपको इस बात का अनुभव हो जाय कि संसार क्षणभंगुर है, परिस्थितियाँ आती जाती रहती हैं, शरीर जन्मते-मरते रहते हैं परंतु आत्मा तो अनादिकाल से अजर अमर है।
जन्मदिवस की बधाई हम नहीं लेते... फिर भी बधाई ले लेते हैं क्योंकि इसके निमित्त भी आप सत्संग में आ जाते हैं और स्वयं को शरीर से अलग चैतन्य, अमर आत्मा मानने का, सुनने का अवसर आपको मिल जाता है। इस बात की बधाई मैं आपको देता भी हूँ और लेता भी हूँ.....
वास्तव में संतों का अवतरण-दिवस मनाने का अर्थ पटाखे फोड़कर, मिठाई बाँटकर अपनी खुशी प्रकट कर देना मात्र नहीं है, अपितु उनके जीवन से प्रेरणा लेकर व उनके दिव्य गुणों को स्वीकार कर अपने जीवन में भी संतत्त्व प्रकट करना ही सच्चे अर्थों में उनका अवतरण-दिवस मनाना है।
Friday, April 2, 2010
परमात्मा
परमदेव परमात्मा कहीं आकाश में, किसी जंगल, गुफा या मंदिर-मस्जिद-चर्च में नहीं बैठा है। वह चैतन्यदेव आपके हृदय में ही स्थित है। वह कहीं को नहीं गया है कि उसे खोजने जाना पड़े। केवल उसको जान लेना है। परमात्मा को जानने के लिए किसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुच्छ विषयों की माँग मत करो। विषयों की माँग कोई भी हो, तुम्हें दीन हीन बना देगी। विषयों की दीनतावालों को भगवान नहीं मिलते। इसलिए भगवान की पूजा करनी हो तो भगवान बन कर करो। देवो भूत्वा यजेद् देवम्। जैसे भगवान निर्वासनिक हैं, निर्भय हैं, आनंदस्वरूप है, ऐसे तुम भी निर्वासनिक और निर्भय होकर आनंद, शांति तथा पूर्ण आत्मबल के साथ उनकी उपासना करो कि 'मैं जैसा-तैसा भी हूँ भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं और वे सर्वज्ञ हैं, सर्वसमर्थ हैं तथा दयालु भी हैं तो मुझे भय किस बात का !' ऐसा करके निश्चिंत नारायण में विश्रांति पाते जाओ।
बल ही जीवन है, निर्बलता ही मौत है। शरीर का स्वास्थ्यबल यह है कि बीमारी जल्दी न लगे। मन का स्वास्थ्य बल यह है कि विकार हमें जल्दी न गिरायें। बुद्धि का स्वास्थ्य बल है कि इस जगत के माया जाल को, सपने को हम सच्चा मानकर आत्मा का अनादर न करें। 'आत्मा सच्चा है, 'मैं' जहाँ से स्फुरित होता है वह चैतन्य सत्य है। भय, चिंता, दुःख, शोक ये सब मिथ्या हैं, जाने वाले हैं लेकिन सत्-चित्-आनंदस्वरूप आत्मा 'मैं' सत्य हूँ सदा रहने वाला हूँ' – इस तरह अपने 'मैं' स्वभाव की उपासना करो। श्वासोच्छवास की गिनती करो और यह पक्का करो कि 'मैं चैतन्य आत्मा हूँ।' इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा, एक एक करके सारी मुसीबतें दूर होती जायेंगी।
बल ही जीवन है, निर्बलता ही मौत है। शरीर का स्वास्थ्यबल यह है कि बीमारी जल्दी न लगे। मन का स्वास्थ्य बल यह है कि विकार हमें जल्दी न गिरायें। बुद्धि का स्वास्थ्य बल है कि इस जगत के माया जाल को, सपने को हम सच्चा मानकर आत्मा का अनादर न करें। 'आत्मा सच्चा है, 'मैं' जहाँ से स्फुरित होता है वह चैतन्य सत्य है। भय, चिंता, दुःख, शोक ये सब मिथ्या हैं, जाने वाले हैं लेकिन सत्-चित्-आनंदस्वरूप आत्मा 'मैं' सत्य हूँ सदा रहने वाला हूँ' – इस तरह अपने 'मैं' स्वभाव की उपासना करो। श्वासोच्छवास की गिनती करो और यह पक्का करो कि 'मैं चैतन्य आत्मा हूँ।' इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा, एक एक करके सारी मुसीबतें दूर होती जायेंगी।
Thursday, April 1, 2010
kitene hi logo ko sukh dukh aata hai par voh aapko farak nahi padata kyoki aap usme jude huwe nahi ho , jab aap judte ho aur use apna manate ho to voh bat aapko sukh aur dukh deti hai par jab tak aap unse nirlep aur nirvikar ho tab voh bat aapko sukh aur dukh nahi deti , karta banana hi dukh ka karna hai aur darshta banana hi sukh ka karan hai bas darshta bane raho aur param ananad aur param sukh ke marg ki aur chal pado jiwan jine ki chah bad jayegi param aanad panae ki rah mil jayegi
सद् गुरू बिन
बचपन खेलकूद में और जवानी अभिमान में खोयी…
बस खेल में बिताया
बचपन वो प्यारा प्यारा
यौवन के मद में खोकर
सारा समय गवाया
जिस तन को तू सवारा
सब देखते रहेंगे
अग्नि में वो जलेगा
ना रूप साथ देगा
ना रंग साथ देगा
सद् गुरू बिन जहां में
कोई ना साथ देगा
बस खेल में बिताया
बचपन वो प्यारा प्यारा
यौवन के मद में खोकर
सारा समय गवाया
जिस तन को तू सवारा
सब देखते रहेंगे
अग्नि में वो जलेगा
ना रूप साथ देगा
ना रंग साथ देगा
सद् गुरू बिन जहां में
कोई ना साथ देगा
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