जहाँ दिव्यता ही जीवन है सागर का गांभीर्य जहाँ
जो कर्मो की फुलवारी है नत-मस्तक है विश्व वहाँ ॥१॥
विपदाएँ कितनी आयी है कितने ही आघात सहे
किन्तु अचल जो खड़ा हुआ है वंदन शत-शत नरवर हे ॥२॥
जिसके मन में ध्येय देव का निशिदिन चिंतन वंदन है
देशभक्ति का प्रकश हँसता जग को पंथ दिखाता है ॥३॥
जिसका स्मित चैतन्य पुरुष है शब्द-शब्द नवदीप प्रखर
जिसकी कृति से भविष्य उज्ज्वल उसको जग का वंदन है ॥४
Sunday, April 4, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment