परमदेव परमात्मा कहीं आकाश में, किसी जंगल, गुफा या मंदिर-मस्जिद-चर्च में नहीं बैठा है। वह चैतन्यदेव आपके हृदय में ही स्थित है। वह कहीं को नहीं गया है कि उसे खोजने जाना पड़े। केवल उसको जान लेना है। परमात्मा को जानने के लिए किसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुच्छ विषयों की माँग मत करो। विषयों की माँग कोई भी हो, तुम्हें दीन हीन बना देगी। विषयों की दीनतावालों को भगवान नहीं मिलते। इसलिए भगवान की पूजा करनी हो तो भगवान बन कर करो। देवो भूत्वा यजेद् देवम्। जैसे भगवान निर्वासनिक हैं, निर्भय हैं, आनंदस्वरूप है, ऐसे तुम भी निर्वासनिक और निर्भय होकर आनंद, शांति तथा पूर्ण आत्मबल के साथ उनकी उपासना करो कि 'मैं जैसा-तैसा भी हूँ भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं और वे सर्वज्ञ हैं, सर्वसमर्थ हैं तथा दयालु भी हैं तो मुझे भय किस बात का !' ऐसा करके निश्चिंत नारायण में विश्रांति पाते जाओ।
बल ही जीवन है, निर्बलता ही मौत है। शरीर का स्वास्थ्यबल यह है कि बीमारी जल्दी न लगे। मन का स्वास्थ्य बल यह है कि विकार हमें जल्दी न गिरायें। बुद्धि का स्वास्थ्य बल है कि इस जगत के माया जाल को, सपने को हम सच्चा मानकर आत्मा का अनादर न करें। 'आत्मा सच्चा है, 'मैं' जहाँ से स्फुरित होता है वह चैतन्य सत्य है। भय, चिंता, दुःख, शोक ये सब मिथ्या हैं, जाने वाले हैं लेकिन सत्-चित्-आनंदस्वरूप आत्मा 'मैं' सत्य हूँ सदा रहने वाला हूँ' – इस तरह अपने 'मैं' स्वभाव की उपासना करो। श्वासोच्छवास की गिनती करो और यह पक्का करो कि 'मैं चैतन्य आत्मा हूँ।' इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा, एक एक करके सारी मुसीबतें दूर होती जायेंगी।
Friday, April 2, 2010
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