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Wednesday, March 17, 2010

झूले झूले झूले झूलुलाल... आयो लाल झुलेलाल. लाल उदेरो रत्नाणी करी भलायूं भाल.... आयो लाल झुलेलाल. असीं निमाणा ऐब न आणा दूला तूहेंजे दर तें वेकाणा करीं भलायूं भाल... आयो लाल झुलेलाल. झूले झूले झूले झुलेलाल cheti chand ju lakh lakh vadhiyu



श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जब-जब धर्म पर संकट आता है, तब-तब वे किसी अवतार के रूप में जन्म लेकर अत्याचारों से मुक्ति दिलाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की वाणी को भगवान झूलेलाल के जन्म ने साकार किया। हर अवतार के साथ गाथा जुड़ी होती है।

भगवान झूलेलाल के अवतार-धारण की भी एक गाथा है। यह ऐतिहासिक गाथा न केवल धर्म संकट से मुक्ति दिलाती है बल्कि सद्भावना, एकता एवं भाईचारे का प्रतीक है, जो आज की विषम परिस्थितियों में समाज एवं राष्ट्र को मजबूत बनाने में सार्थक सिद्ध होती है। भगवान झूलेलाल ने राष्ट्र को मजबूत बनाने हेतु एकमात्र उपाय आपसी प्रेम, सद्भावना एवं एकता बताया है। भगवान झूलेलाल के उपदेशों पर चलकर देश को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। यही प्रेरणा चेटीचंड एवं चालीहा साहब से मिलती है।

'चेटीचंड' के दिन न केवल भगवान झूलेलाल का जन्मदिन रहता है बल्कि चेटीचंड से  समाज के 'नूतन वर्ष' का भी शुभारंभ होता है। नया वर्ष समाज में नई उमंग, नया उत्साह एवं नई प्रेरणाएँ जाग्रत करता है। चेटीचंड पर दीपावली की तरह घरों एवं दुकानों पर जगमगाती रोशनी की जाती है और इस रोशनी से मन को रोशन करने की नेक भावना रहती है। चेटीचंड अर्थात झूलेलाल का जन्म समाज को एकता और बंधुत्व का संदेश देता है।

भगवान झूलेलाल मनोकामना पूर्ण करने वाले देवता हैं। जो मनुष्य सच्चे मन से अपनी कामना की झोली फैलाकर सामूहिक प्रार्थना करते हैं, उनकी झोली कभी खाली नहीं जाती। लोग अपनी हर अच्छी कामना लेकर जाते हैं और खुश होकर उनके दरबार से लौटते हैं।

भगवान झूलेलाल के पुजारी एवं सेवक प्रतिवर्ष 16 जुलाई से 24 अगस्त तक 40 दिन का व्रत रखकर जल एवं ज्योति की पूजा करते हैं तथा सबकी सुख-शांति, एकता, प्रगति एवं कल्याण हेतु सामूहिक प्रार्थना (पलव) करते हैं। चालीसों दिन नौरात्रा अनुरूप नियमों का पालन भी कड़ाई से करते हैं। चालीहा साहब के व्रत रखने से धर्म के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तो सामाजिक रूप से व्रतधारियों के कुशल व्यवहार, नम्रता, सादगी एवं कर्तव्यनिष्ठता से प्रतिष्ठा बढ़ती है। चालीहा साहब के पूजन कार्यक्रम भी शांति, एकता एवं सद्भावना के प्रतीक हैं।


'सिंधियत' के प्रतीक : चेटीचंड एवं चालीहा साहब दोनों ही 'सिंधियत' के प्रतीक हैं। चेटीचंड पर सिंधु संस्कृति के अनुरूप जहाँ बच्चों के मुंडन एवं जनेऊ के धार्मिक कार्यक्रम संपन्न कर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं, वहीं चालीहा साहब पर हवन, पूजा, आरती, भजन, सबके कल्याण हेतु प्रार्थना, कन्याओं को भोज, निर्धनों एवं असहाय लोगों की मदद करने का नेक कार्य किया जाता है। चालीहा साहब सिंधु संस्कृति, कला, सभ्यता के विकास की प्रेरणा देता है तथा ईष्ट देवता के पूजन की प्रेरणा जाग्रत करता है।

चालीहा साहब सिंधी समाज को सभी धर्मों का सम्मान करने की भी प्रेरणा देता है। जब सब ईश्वर की संतान हैं तो सभी एक-दूसरे के भाई-बहन हैं, इस भावना से धर्मनिरपेक्षता की भावना को शक्ति मिलती है। चालीहा साहब पर 40 दिन तक लगातार उपासना व्रत, ईष्टदेव के प्रति श्रद्धा वास्तव में दूसरों के कल्याण हेतु कठोर तपस्या है जिसका फल अवश्य मिलता है।

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