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Saturday, March 20, 2010

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..ना हम वसामि वैकुंठे योगिनाम ह्रुदएंवयी

मद भक्ता यत्र गायंत्री तत प्रतिष्ठामी नारदा

किसी का बुरा ना करो..किसी का बुरा ना सोचो… जनमने मरने के बाद भी मैं रहेता हूँ ऐसा सोचो .. आप के कर्म में अ-शुध्दी ना हो…आप के भाव में अ-शुध्दी नहीं हो.. आप की बुध्दी में ब्रम्हज्ञानी का ज्ञान हो… आप का जन्म दिव्य हो जाएगा….भगवान बोलते मैं ऐसे योगियों के ह्रदय में जरुर मिलता हूँ जिन के ह्रदय में दिव्यता मधुरता और प्रसन्नता होती…वहा मेरी पूर्ण पूजा होती है..

हरी सम जग कछु वस्तु नहीं प्रेम सम पंथ सदगुरू सम सज्जन नहीं गीता सम नहीं ग्रन्थ ll

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