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Saturday, March 20, 2010

आर्त भाव से भगवान को प्रार्थना करे…



‘हे दिन बंधो ! …मेरे जो कर्म दिव्य बने है तो आप की कृपा है; लेकिन नीच कर्मो से बचाने की आप ही कृपा करो.. हे दिव्य प्रभु, नित्य देव तुम ही मेरे अंतरात्मा, अन्तर्यामी हो.. समर्थ हो.. दयालु हो..मुझ पर कृपा करे….’ ऐसे भगवान को पुकारते पुकारते श्वासों-श्वास में भगवन नाम की गिनती करे…तो आप के कर्म दिव्य होने लगेंगे …. मन की दुष्टता, बुध्दी का रागद्वेष, कर्म का बंधन मिटाकर परमात्मा का रस पाने में साधक सफल होने लगता है…..

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