जो आध्यात्मिक उन्नति करता है, उसकी भौतिक उन्नति सहज में होने लगती है। सुख भीतर की चीज है और भौतिक चीज बाहर की है। सुख और भौतिक चीजों में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है।
दरिद्र कौन है ? जो दूसरों से सुख चाहता है, वह दरिद्र है। मूर्ख कौन है ? जो इस संसार को सत्य मानकर उस पर विश्वास करता है, वह मूर्ख है। संसार के स्वामी जगदीश्वर को नहीं खोजता है, वह महामूर्ख है।
अपनी मनोवांछित इच्छाओं के मुताबिक काम्य पदार्थ पाकर जो सुखी होना चाहता है वह सुख और विघ्न-बाधाओं के बीच दुःखी होते-होते जीवन पूरा कर देता है।
समय बीत जायेगा और काम अधूरा रह जायेगा। आखिर पश्चाताप हाथ लगेगा। उससे पहले ईश्वर के राह की यात्रा शुरू कर दो। रात्रि में चलते-चलते ठोकरें खानी पड़े, इससे अच्छा है कि दिन दहाड़े चल लो बुढ़ापा आ जाय, बुद्धि क्षीण हो जाय, इन्द्रियाँ कमजोर हो जायें, देह काँपने लगे, कुटुम्बीजन मुँह मोड़ लें, लोग अर्थी में बाँधकर 'राम बोलो भाई राम...' करते हुए श्मशान में ले जायें उससे पहले अपने आपको शाश्वत में पहुँचा दो तो बेड़ा पार हो जाय।
Saturday, April 24, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment