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Sunday, April 18, 2010

प्रेममें मगन होकर भगवान् का भजन लगनसे करे और भगवान् के आगे करुणाभावसे रोता रहे-’हे नाथ! हे हरि! हे गोविन्द! हे वासुदेव! हे नारायण! मुझे तो केवल आपका ही सहारा है,मेरा आपके बिना और कोई आधार नहीं है।प्रभु! मेरेमें न ज्ञान है,न भक्ति है,न वैराग्य है,और न प्रेम ही है।मेरेमें कुछ भी तो नहीं है!मैं तो केवल आपकी शरण हूँ,वह भी केवल वचनमात्रसे!आप ही दया कर


 करके मुझे सब प्रकारसे अपनी शरणमें लें।

हमको तो नाथ!दयाकर अपना वह प्रेम दो जिससे अश्रु-पूर्ण-लोचन और गद्गदकण्ठ होकर निरन्तर तुम्हारा नाम-गुणगान करते रहें;वह शक्ति दो,जिससे जन्म-जन्मान्तरमें कभी तुम्हारे चरणकमलोंकी विस्मृति एक क्षणके लिये स्वप्नमें भी न हो,तुम्हारा नाम लेते हुए आन्नदसे मरें और तुम्हारी इच्छासे जिस योनिमें जन्में तुम्हारी ही छ्त्र छायामें रहें।

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