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Friday, July 2, 2010

आत्मबल का आवाहन




क्या आप अपने-आपको दुर्बल मानते हो ? लघुताग्रंथी में उलझ कर परिस्तिथियों से पिस रहे हो ? अपना जीवन दीन-हीन बना बैठे हो ?

…तो अपने भीतर सुषुप्त आत्मबल को जगाओ
शरीर चाहे स्त्री का हो, चाहे पुरुष का, प्रकृति के साम्राज्य में जो जीते हैं वे सब स्त्री हैं और प्रकृति के बन्धन से पार अपने स्वरूप की पहचान जिन्होंने कर ली है, अपने मन की गुलामी की बेड़ियाँ तोड़कर जिन्होंने फेंक दी हैं, वे पुरुष हैं
स्त्री या पुरुष शरीर एवं मान्यताएँ होती हैं
तुम तो तन-मन से पार निर्मल आत्मा हो


जागो…उठो…अपने भीतर सोये हुये निश्चयबल को जगाओ




सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को विकसित करो


आत्मा में अथाह सामर्थ्य है
अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हें ऊपर उठा सके
अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हें दबा सके




आप शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर, देश, सागर, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र एवं पूरे ब्रह्माण्ड़ के दृष्टा हो, साक्षी हो
इस साक्षी भाव में जाग जाओ

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