मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नहीं होती।
जब तुम अपनी सहायता करते हो तो ईश्वर भी तुम्हारी सहायता करता ही है। फिर दैव (भाग्य) तुम्हारी सेवा करने को बाध्य हो जाता है।
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
जब तक 'तू' और 'तेरा' जिन्दे रहेंगे तब तक परमात्मा तेरे लिये मरा हुआ है। 'तू' और 'तेरा' जब मरेंगे तब परमात्मा तेरे जीवन में सम्पूर्ण कलाओं के साथ जन्म लेंगे। यही आखिरी मंजिल है। विश्व भर में भटकने के बाद विश्रांति के लिए अपने घर ही लौटना पड़ता है। उसी प्रकार जीवन की सब भटकान के बाद इसी सत्य में जागना पड़ेगा, तभी निर्मल, शाश्वत सुख उपलब्ध होगा।
आत्मशान्ति की प्राप्ति के लिए समय अल्प है, मार्ग अटपटा है। खुद को समझदार माननेवाले बड़े बड़े तीसमारखाँ भी इस मार्ग की भूलभूलैया से बाहर नहीं निकल पाये। वे जिज्ञासु धन्य हैं जिन्होंने सच्चे तत्त्ववेत्ताओं की छत्रछाया में पहुँच कर साहसपूर्वक आत्मशांति को पाने के लिए कमर कसी है।
दुःख से आत्यान्तिक मुक्ति पानी हो तो संत का सान्निध्य प्राप्त कर आत्मदेव
दुःख से आत्यान्तिक मुक्ति पानी हो तो संत का सान्निध्य प्राप्त कर आत्मदेव को जानो।
तुम्हारे भीतर वह निर्भयस्वरूप आत्मदेव बैठा हुआ है, फिर भी तुम भयभीत होते हो ? अपने निर्भय स्वरूप को जानो और सब निर्बलताओं से मुक्त हो जाओ। उखाड़ फेंको अपनी सब गुलामियों को, कमजोरियों को। दीन-हीन-भयभीत जीवन को घसीटते हुए जीना भी कोई जीवन जीना है ?
Hey Prabhu,kab aayenghe woh pal jab hum gurudev jho hum dena chate hai usmein range de apne ko.Gurudev abh is sansaari khilono se dil nahi behlana hai apni us noorani masti mein mast hona hai.Apne us alakh ki masti mein khona hai,jah na mein rahu,na janm ho ,na mrtyu ho,na desh,na kal,apne ko uss noorani masti mein khota chal....Hey sadhak.
साधना के राह पर हजार विघ्न होंगे, लाख-लाख काँटे होंगे। उन सब पर निर्भयतापूर्वक पैर रखोगे तो वे काँटे फूल बन जायेंगे।
नाथ! आप तो दीनबन्धु हैं! करुणासागर हैं! फिर क्या आप हमारे लिये ही कठोर बन जायँगे?आप तो अकारण ही प्रेमकरनेवाले हैं! फिर क्या आप हमारे लिये ही कारण खोजेंगे? हे नाथ! विशेष न तरसाईये! अपनी विरद की तरफ देखकर ही हमें प्रेम-प्रदान कीजिये।इस जीवन को रसमय बना दीजिये।इस हृदय में तो तनिक भी प्रेम नहीं है!
यह तन(शरीर) विष की बेलरी,गुरु अमृत की खान,शीश दिए सतगुरु मिले,तो भी सस्ता जान.......
Friday, July 9, 2010
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1 comment:
यह तन(शरीर) विष की बेलरी,गुरु अमृत की खान,शीश दिए सतगुरु मिले,तो भी सस्ता जान......
बहुत सही !!
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