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Wednesday, July 7, 2010

GURU POONAM DIYAN

साधक आत्मा में विश्रांति पाता है तो गुरु की प्रेमपूर्ण कृपा उस पर बरसती है।


गुरू बताते हैं-** **"हे वत्स** **!** **जो मैं देहरूप होकर दिख रहा हूँ, वह

मैं नहीं हूँ। यह एक देह, नात-जात या मत-पंथ मेरा नहीं है। जो दिख रहा हूँ,

वैसा मैं नहीं हूँ। किसी देश में या प्रांत में अथवा किसी काल में या किसी रूप

में जैसा दिखता हूँ, वैसा मैं नहीं हूँ।***



*ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ से तू मुझसे बाहर निकल सके। ऐसा कोई समय नहीं जब मैं

नहीं हूँ। ऐसा कोई कर्म नहीं जो तू मुझसे छिपा सके। तत्त्व से तू मेरा अनुभव

करे तो तू मुझमें ही रहता है, मुझमें ही बोलता है। मैं तुझे यह गोपनीय बात बता

रहा हूँ। देह की आकृति से मैं लेता देता, कहता सुनता दिखता हूँ, इतना मैं नहीं

हूँ। तू देह में बँधा है, इसलिए देह में रहकर तुझे जगाना होता है।"***



*श्रीमद् राजचन्द्र ने ठीक कहा हैः***



*देहं छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत।***



*ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणीत।।***



*"हे वत्स** **!** **तू देह को** **'मैं'** **मत मानना। यह देह तो प्रतीतिमात्र

है। तू प्रतीति में मत जाना, निज प्राप्ति में आना। तू अपने स्वरूप की प्राप्ति

करने आया है। जब तक तू लक्ष्य को नहीं पायेगा, मैं तेरा पीछा नहीं छोड़ूँगा।

मेरे दिल में तेरे कल्याण के सिवाय और कुछ नहीं है। हे साधक** **!** **कई बार

तू गलती करता है, फिर प्रायश्चित करता है, रोता है, पुकारता है। कई बार मेरे से

दूर होकर विकारों में जाता है लेकिन मैं तेरे से दूर नहीं हो सकता हूँ। मैं

तेरी कमजोरियाँ जानता हूँ, तेरी मनमानियाँ भी जानता हूँ। संसार में तू

सँभल-सँभलकर कदम रखना। तेरी श्रद्धा का धागा टूटे नहीं, इसका ख्याल रखना। तू

मनमुखता की आँधी में कहीं उलझ न जाय वत्स** **!** **बार-बार स्मरण, सत्संग और

सान्निध्य तुझे इन खतरों से बचाता रहेगा। तू कहीं भी रहे लेकिन मुझमें रहना।

जैसे श्रीकृष्ण और उद्धव का मिलन हुआ था वैसे ही तेरा और मेरा मिलन हो जाय,

साक्षात्कार हो जाय यही उद्देश्य बनाय रखना। हे साधक** **!** **तेरा और मेरा

बाहर का मिलन हो, ऐसा मिलन नहीं। तू अपने को देह मानता है। देह तो आती जाती है

और तू मुझे भी आता-जाता मानता है।***



*बाहर के ये संबंध तो मिटने वाले हैं लेकिन हे वत्स** **!** **तेरा और मेरा

संबंध अमिट है। आत्मा संबंध तथा गुरु और शिष्य का संबंध सत्य है, अमिट है।

जितना तू सत्य में ठहरता जायेगा, उतना ही तू मुझसे एक होता जायगा।***



*वत्स** **!** **जब तक तू पूज्य पद में नहीं ठहरा, तब तक मेरा प्रयत्न बंद नहीं

होगा। अपनी श्रद्धा-भक्ति बढ़ाते रहना। साधना छोड़ना मत। साधना छोड़ेगा तो

विकार और अहंकार तुझे धोखा देंगे। तू गुरू के दैवी कार्यों में लगे रहना, ताकि

विकारी कार्य तुझे बर्बाद न करें। तू मेरे प्रेम दरवाजे पर खड़े रहना, ताकि काम

का दरवाजा तेरे लिए आकर्षक न बने। तू राम के दरवाजे पर ही डटे रहना क्योंकि-***



*जहाँ राम तहँ नहीं काम,***



*जहाँ काम तहँ नहीं राम।***



*जब-जब तुझे काम सताये तब-तब तू अपने राम को पुकारना। उस स्थान को तुरंत छोड़

देना। वत्स** **!** **मैं तेरी कमजोरियाँ जानता हूँ। तेरी सम्भावना भी जानता

हूँ।***

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