हे मेरे प्रभु … !
तुम दया करना । मेरा मन … मेरा चित्त तुममें ही लगा रहे ।
अब … मैं कब तक संसारी बोझों को ढोता फिरुँगा … ? मेरा मन अब तुम्हारी यात्रा के लिए ऊर्ध्वगामी हो जाये … ऐसा सुअवसर प्राप्त करा दो मेरे स्वामी … !
हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो … । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ …। मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे ।
हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, साथियों से बचाओ …अपने आपमें जगाओ ।
हे मेरे मालिक ! अब … कब तक … मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा रही है … कुछ तो रहमत करो कि अब … आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ ।
ॐ शांति ! ॐ आनंद !!
सोऽहम् सोऽहम् सोऽहम्
आखिर यह सब कब तक … ? मेरा जीवन परमात्मा की प्राप्ति के लिए है, यह क्यों भूल जाता हूँ ?
मुझे … अब … आपके लिए ही प्यास रहे प्रभु … !
अब प्रभु कृपा करौं एहि भाँति ।
सब तजि भजन करौं दिन राती
Sunday, July 4, 2010
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