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Tuesday, July 6, 2010

 चातक मीन पतंग जब पिया बिन नहीं रह पाय।

साध्य को पाये बिना साधक क्यों रह जाय।।

 जैसे, पानी के एक बुलबुले में से आकाश निकल जाए तो बुलबुले का पेट फट जाएगा। जीवत्व का, कर्त्ता का, बँधनों का, बुलबुले का आकाश महाकाश से मिल जाएगा। घड़े का आकाश महाकाश से मिल जाएगा। बूँद सिंधु हो जाएगी। ऐसे ही अहं का पेट फट जाएगा। तब अहं हटते ही जीवात्मा परमात्मा से एक हो जाएगा।

 जैसे, पानी के एक बुलबुले में से आकाश निकल जाए तो बुलबुले का पेट फट जाएगा। जीवत्व का, कर्त्ता का, बँधनों का, बुलबुले का आकाश महाकाश से मिल जाएगा। घड़े का आकाश महाकाश से मिल जाएगा। बूँद सिंधु हो जाएगी। ऐसे ही अहं का पेट फट जाएगा। तब अहं हटते ही जीवात्मा परमात्मा से एक हो जाएगा।


 मुक्ति का अनुभव करने में कोई अड़चन आती है तो वह है यह जगत सच्चा लगना तथा विषय, विकार व वासना के प्रति आसक्ति होना। यदि सांसारिक वस्तुओं से अनासक्त होकर 'मैं कौन हूँ ?' इसे खोजें तो मुक्ति जल्दी मिलेगी। निर्वासनिक चित्त में से भोग की लिप्सा चली जाएगी और खायेगा, पियेगा तो औषधवत्.... परंतु उससे जुड़ेगा नहीं।


सुख बाँटने की चीज है तथा दुःख को पैरों तले कुचलने की चीज है। दुःख को पैरों तले कुचलना सीखो, न ही दुःख में घबराहट।

हे मानव ! तू सनातन है, मेरा अंश है। जैसे मैं नित्य हूँ वैसे ही तू भी नित्य है। जैसे मैं शाश्वत हूँ वैसे ही तू भी शाश्वत है। परन्तु भैया ! भूल सिर्फ इतनी हो रही है कि नश्वर शरीर को तू मान बैठा है। नश्वर वस्तुओं को तू अपनी मान बैठा है। लेकिन तेरे शाश्वत स्वरूप और मेरे शाश्वत सम्बन्ध की ओर तेरी दृष्टि नहीं है इस कारण तू दुःखी होता है।

तू अजर, अमर आत्मा-परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करके यहीं पर मुक्ति का अनुभव कर ले भैया !

दो बातन को भूल मत, जो चाहत कल्याण।
नारायण एक मोत को, दूजो श्री भगवान।।

मृत्यु और ईश्वर को जो नहीं भूलता है उसकी चेतना शीघ्र जाग्रत होती है। अतः ईश्वर और मृत्यु को मत भूलो। मृत्यु को याद करने से वैराग्य आयेगा और ईश्वर को याद करने से अभ्यास होगा।

ज्ञानके द्वारा जिनकी चित्-जड-ग्रन्थि कट गयी है, ऐसे आत्माराम मुनिगन भी भगवान् की निष्काम भक्ति किया करते हैं, क्योंकि भगवान् के गुण ही ऐसे हैं कि वे प्राणियोंको अपनी और खींच लेते हैं ।

 परमात्मा तब मिलता है जब परमात्मा की प्रीति और परमात्म-प्राप्त, भगवत्प्राप्त महापुरुषों का सत्संग, सान्निध्य मिलता है। उससे शाश्वत परमात्मा की प्राप्ति होती है और बाकी सब प्रतीति है। चाहे कितनी भी प्रतीति हो जाये आखिर कुछ नहीं। ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गये, विश्व का राज्य मिल गया लेकिन आँख बन्द हुई तो सब समाप्त।

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