सुबह सुबह का प्यारा सा ख्वाब था
हलकिसे नींद में आँखों पर
अबतक तेरा नुरानी चेहरा
...धुंदलासा नजर आ रहा था ...
जागने की कोशिश में सोच रहा था
कही तुम ओज़ल ना हो जाओ ...
मै तो बस देखता ही रह गया
आँखे ऐसे ही बंद रख ली
जिसे वे इश्क करते है, उसी को आजमाते हैं।
खजाने रहमतों के इसी बहाने लुटवाते हैं।।
जैसे मिल गयी हो मुझे मेरी मंजिल ...
क्या बताऊ मै...
हे मेरे प्रभु
तबसे लेकर आजतक
तुम्हे तलाशता फिर रहा हुं ..
आँखे खोलकर ...
हर दिशा , हर डगर , हर नगर
सिर्फ और सिर्फ होता है दीदार तुम्हारा
हर रोज ...
सुबह सुबह के ख्वाब में ..
दुनिया के हंगामों में आँख हमारी लग जाय।
तो हे मालिक ! मेरे ख्वाबों में आना प्यार भरा पैगाम लिये।
अब सोच लिया है मैंने
अब नही खुलेगी ये आँखे
मेरे आखरी सांस तक
तुम्हे जो पाना है मुझे..
Thursday, July 1, 2010
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